सिंहगढ़ की लड़ाई के वीर विजेता, कोलियकुलभूषण और छत्रपति शिवाजी महाराज के महान सेनापति तानाजी मालुसरे का आज शहादत दिवस है।
बात 4 फरवरी 1670 की है। तब सिंहगढ़ किले के किलेदार एक राजपूत कमांडर उदयभान राठौड़ हुआ करते थे।
कहा जाता है कि युद्ध सिपाही लड़ते हैं और नाम सरदार का होता है। मगर सिंहगढ़ का युद्ध अपवाद है।
इस लड़ाई में खुद सरदार ने सबसे पहले सत्तर साल की उमर में जमीन से साढ़े सात सौ मीटर ऊँचे किले की चढ़ाई चढ़ी थी और आमने-सामने की लड़ाई में वे शहीद हुए।
तानाजी मालुसरे की शहादत और कोंढाणा किले की जीत पर छत्रपति शिवाजी महाराज ने कहा था कि गढ़ आला पण सिंह गेला ( गढ़ आया, पर सिंह चला गया )।
गढ़ आला पण सिंह गेला नाम से हरि नारायण आप्टे ने 1903 में वीर नायक तानाजी के जीवन और उनके वीरतापूर्ण कारनामे पर मराठी में उपन्यास लिखा है।
किंतु वीर तानाजी पर सबसे पहले पोवाड़ा लिखने का श्रेय मराठी कवि तुलसीदास को है।
मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने जिस कोंढाणा किले को 1328 में कोली सरदार नाग नाइक से जीता था, उसे 1670 में 70 साल के कोली सरदार तानाजी ने फिर से जीता लिया था।
सिंहनायक तानाजी के नाम पर कोंढाणा किले का नाम सिंहगढ़ पड़ा है और सिंहगढ़ किले पर उनका स्मारक बना है। अभी हाल में पुरातत्व अन्वेषकों ने तानाजी की समाधि खोज लेने का दावा किया है।
शहादत दिवस पर नमन!!!
राजेंद्र प्रसाद सिंघ