राखीगढ़ में मिले सबूत क्या सचमुच यह साबित करते है की आर्य यूरेशिया से नहि आए थे ?

मुम्बई : आर्य बाहर से आए है यह बात अब आर्यों को परेशानी में डालने लगा है । जब से यह लोग सत्ता में आए है तब से हि इनकी कोशिश थी की इतिहास बदल दिया जाय । क्योंकि इतिहास में यही लिखा गया है की आर्य बाहर से आए है । बाल गंगाधर तिलक से लेकर नेहरु सब ने इसे सही साबित किया ।

कई सरी DNA रेपोर्ट आइ एक २००१ में और एक पिछले साल जिसने इस बात को पुख़्ता रूप से साबित किया की हाँ आर्य बाहर से आए थे । सारे सबूत यह साबित करते है ।

अब अचानक से राखीगढ़ में मिले सबूतों के तौर पर यह साबित करने की कोशिश की जा रही है की आर्य यूरेशिया से नहि आए थे ।

तीन साल तक चली स्टडी के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया है की आर्य यहीं के निवासी थे ।

और इसी ख़बर को लेकर समाचार अजेंसी और RSS के लोग बड़े बड़े लेख लिख रहे है । अखबारो में छप रहा है और यह साबित करने की कोशिश की जा रही हैं की । आर्य बाहर से आए थे यह थेओरी ग़लत है ।

पर सच क्या है इसे जानने के लिए यह जानना ज़रूरी है की अख़िर पुरातत्व विभाग के अधिकारी मिस्टर शिंदे ने कहा क्या था रेपोर्ट क्या कहती है उनकी ?

प्रोफ़ेसर वसंत शिंदे की रेपोर्ट कहती है “सिंधु घाटी सभ्यता के शहर राखीगढ़ी में जो कंकाल मिले हैं उनमें वो जीन नहीं है जो यूरेशिया के घास के मैदानों वाले इलाक़े यानी स्तेपी के लोगों में पाए जाते हैं।”

वैज्ञानिक प्रमाण इतना सा बताया जा रहा है। बाक़ी सब व्याख्याएँ हैं। और इसी को लेकर अख़बार अपने मन से रेपोर्ट् ख़बरें बना रहे है ।

यह रेपोर्ट यह कहती है की राखीगढ़ के कंकाल के DNA यूरेशिया के लोगों से नहि मिलती पर यह नहि बताती की यहाँ के सवर्ण के लोगों से नहि मिलता ।

भाषा वैज्ञानिक राजेंद्र प्रसाद लिखते है –

प्रो. वसंत शिंदे ने रिसर्च में कहा है कि आर्य और द्रविड़ एक ही थे, मगर भाषा की उत्पत्ति कैसे हुई ये मुझे नहीं मालूम है।

तो सुनिए प्रोफेसर साहब आपको नहीं मालूम है तो भाषाओं का डीएनए सिस्टम पर मैंने काम किया है, मुझे मालूम है कि आर्य और द्रविड़ भाषाओं का डीएनए सिस्टम अलग-अलग हैं, इसे कदापि एक सूत्र में नहीं बाँधा जा सकता है।

आपका नया सिद्धांत हवा – हवाई है।

राखीगढ़ी में मिले नर – कंकालों के डीएनए सैंपलों की जाँच सही है कि ये नर – कंकाल आर्य – जीन के नहीं हैं।

इसका निष्कर्ष यह होगा कि सिंधु घाटी की सभ्यता कहीं से भी आर्य सभ्यता नहीं थी और आर्य यहाँ के मूल निवासी नहीं थे।

मगर डीएनए सैंपलों की जाँच सही होते हुए भी निष्कर्ष गलत निकाला गया है और अखबार का रिपोर्टिंग दोषपूर्ण है।

इसी को कहते हैं तिल को ताड़ बनाना।

तिल का ताड़ तो यह लोग अभी बता रहे है आज सेप्टेम्बर 2019 मेन राजेंद्र प्रसाद जी ने पिछले साल हि यह लिख दिया था की DNA नहि मिल राह है तो रिज़ल्ट यह नहि है की आर्य यूरेशिया से नहि आए बल्कि रिज़ल्ट यह है की राखीगढ़ में आर्यों की सभ्यता नहि थी बल्कि द्रविण लोगों की सभ्यता थी ।

लेकिन बात का ऐसा बंतगड़ बनाया जा रहा है की इसे ले

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