आज जहाँ भारत में आरक्षण को विकास में बाधक बताने की कुछ लोग कोशिश कर रहें है , हम दुनिया के दो महा शक्तियाँ अमेरिका और रूस को कम्पेयर कर के देख सकते है की डाईवार्सिटी लागू करके अमेरिका दुनिया का नम्बर १ देश है और रूस आज बेचारा बना हुआ है ।
रूस के बेचारे होने के पीछे डाइवर्सिटी की अनदेखी ही प्रधान कारण है –
शक्ति के सोतों (आर्थिक,राजनीतिक ,धार्मिक-सांस्कृतिक इत्यादि ) में सामाजिक और लैंगिक विविधता की अनदेखी के कारण ही रूस इस कारुणिक स्थिति का सामना करने के लिए ऐतिहासिक कारणों से अभिशप्त है ।
सत्तर के दशक में हमलोग सुनते थे कि रूस और अमेरिका प्रायः समान रूप से शक्तिशाली हैं ; महज 19-20 का फर्क है दोनो देशों में . किन्तु 15मार्च 1968 को नस्लीय दंगों पर केन्द्रित कर्नर आयोग की रपट प्रकाशित होने के बाद जिस दिन अमेरिकी प्रेसिडेंट लिंडन बी. जॉनसन ने यह घोषणा किया कि अमेरिका हर जगह दिखना चाहिए,उसी दिन अमेरिका ने रूस पर बढ़त बना ली और आज दोनों के मध्य जमीं-आसमान का फर्क पैदा हो चुका है।
प्रेसिडेंट जॉनसन के अमेरिका हर जगह दिखने का आशय यह था कि शक्ति के समस्त स्रोतों में वहां की नस्लीय विविधता दिखे. अर्थात आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक इत्यादि प्रत्येक क्षेत्र में विभिन्न नस्लीय समूहों और उनकी महिलाओं का प्रतिनिधित्व दिखे. यह आइडिया अम्बेडकरी आरक्षण का विस्तार थी.जॉनसन के उस आह्वान का अनुसरण परवर्तीकाल में रीगन,कार्टर ,निक्सन इत्यादि सभी राष्ट्राध्यक्षों ने किया. धीरे-धीरे नस्लीय और लैंगिक विविधता का यह प्रतिबिम्बन सभी प्रकार नौकरियों, सप्लाई, डीलरशिप, फिल्म-टीवी,शासन-प्रशासन होने लगा.इस विविधता नीति से नासा,हार्वर्ड जैसे सर्वोच्च स्तर के संसथान तक मुक्त नहीं रहे. हालीवुड , टीवी , न्यूज़ अंकर तक सभी संसाधनों में जनसंख्या के हिसाब सबकी भागीदारी सुनिश्चित की गई ।
शक्ति के स्रोतों में सामाजिक और लैंगिक विविधता के प्रतिबिम्बन से अमेरिका को सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि उसे दुनिया का बेहतरीन मानव संसाधन मिलने का मार्ग प्रशस्त हुआ
डाइवर्सिटी पालिसी के जरिये अमेरिका को शक्ति के स्रोतों से बहिष्कृत महिलाओं और रेड इंडियंस,हिपैनिक्स, बलैक्स इत्यादि से युक्त 30 प्रतिशत अल्पसंख्यकों के मानव संसाधन के सदुपयोग का अवसर मिला ही, इस पालिसी के तहत उपलब्ध अवसरों का सद्व्यवहार करने के दुनिया की सर्वोत्तम प्रतिभाएं भी अमेरिका का रुख कीं. फलस्वरूप आर्थिक -शैक्षिक,साइंस,टेक्नोलॉजी,के साथ खेल-कूद,फिल्म-टीवी, पॉप म्यूजिक इत्यादि हर क्षेत्र में अमेरिका वहां पहुँच गया जहा एक रंग के विश्वासी रशियन सिर्फ पहुँचने की कल्पना मात्र कर सकते हैं।
भारत में शक्ति के स्रोतों में सामाजिक और लैंगिक विविधता लागू करवाने की कोशिश ही नहि होती । और ऐसा न करने का सबसे खास कारण यह रहा है कि वे जानते हैं इससे हजारों साल से शक्ति के स्रोतों पर सवर्णों का जो 80-85 प्रतिशत कब्ज़ा है, वह ध्वस्त हो जायेगा।
शक्ति के स्रोतों पर हजारों साल के जन्मजात शोषक सवर्णों का ८०-८५ % वर्चस्व है और डेमोक्रेटिक व्यवस्था में उनके वर्चस्व को तोड़कर सभी समूहों के मध्य शक्ति के न्यायोचित वितरण का सर्वोत्तम उपाय डाइवर्सिटी ही है.इसलिए उन्हें डाइवर्सिटी /आरक्षण पर अपने रूख पर बदलाव लाना चाहिए और देश के विकास के लिए अपने जाती वर्चस्व का त्याग करना चाहिए।