आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। आप सभी को शुभकामनायें। यह एक अवसर है कि उन महापुरुषों को याद करने का जिन्होंने देश की वर्ण -जाति पर आधारित समाज व्यवस्था में शूद्रों जैसी स्थिति वाली महिलाओं के अधिकारों /उत्थान के लिए कार्य/ संघर्ष किया।
सर्वप्रथम महामानव भगवान बुद्ध ने महिलाओं को अपने संघ में प्रवेश देकर उनको पुरुषों के साथ समानता प्रदान की एवं शिक्षक/गुरु बनने का अवसर दिया।
इसके बाद मैं उल्लेख करना चाहूंगा माता सावित्रीबाई फुले का। सावित्रीबाई फुले ने अनेक कष्ट सहकर भी फातिमा शेख़ के साथ मिलकर महिलाओं के लिए स्कूल खोले एवं अध्यापन कार्य किया ।यह वह समय था जब महिलाओं के लिए शिक्षा लेना वर्जित था । महात्मा फुले और सावित्री माई ने धर्म और समाज के विरोध में जाकर महिलाओं को शिक्षित किया ।यही भारत की असली देवी है । अगर वह न होती तो आज भी भारत की महिलाएँ काफ़ी पीछे होती । पाकिस्तान अफगनिसतान सहित कई देशों में महिलाओं को शिक्षित होने लिए आज भी संघर्ष करना पड़ता है ।सावित्री बाई ने महिलाओं के लिए यह प्रयास 200 साल पहले ही शुरू कर दिया था जिसका नतीजा हम आज देखते है ।
अगर वह न होती तो आज महिलायें महिला दिवस के बारे में सोच ही नहि सकती थी ।
इसके बाद बाबासाहेब बी आर आंबेडकर ने महिलाओं के अधिकारों के लिए बहुत कार्य किये। उन्होंने श्रम मंत्री रहते महिलाओं के कार्य के घण्टे कम कराये, मातृत्व अवकाश स्वीकृत करने का नियम बनवाया।महिलाओं के लिए खतरनाक कार्य निषिद्ध करवाये। संविधान निर्माता के रूप में उन्होंने लिंग समानता को संविधान के मूलाधिकारों में जगह दी ।भारत के कानून मंत्री के रूप में उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए हिन्दू कोड विल संसद में प्रस्तुत किया और जब यह पास नहीं किया गया तो कानून मंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया । महिलाओं को संपती में हिस्सेदारी दिलाई । बाबासाहेब कहते थे कि किसी समाज/समुदाय की प्रगति मैं उस समाज में हुई महिलाओं की प्रगति से मापता हूँ। इन सभी महापुरुषों को मैं नमन करता हूँ।
यह वही लोग है जिन्होंने महिलाओं को हक़ दिलाने के लिए अपना सर्वस्य न्योछावर कर दिया । पर अधिकतर महिलाओं को इनके बारे में सोचने का समय ही नहि है ।
जिन तिलक ने लड़कियों की शादी की उम्र 12 से 14 करने पर इतना विरोध किया उनकी मूर्तियाँ नहि तोड़ी जाती इस देश में वह लोक मान्य है पर बाबा साहेब ने इतना कुछ किया महिलाओं के लिए उनकी मूर्ति तोड़ी जाती है।आख़िर ऐसा क्या कर दिया था बाबा साहेब ने ।इससे पता चलता है की हम जो जानते है और जो हमें पढ़ाया जाता है हक़ीक़त उससे अलग है ।
झलकारी बाई कोरी की जगह रानी लक्ष्मी बाई को पढ़ाया जाता है । उदा देवी पासी 1857 की ग़दर नायिका को इतिहास में जगह ही नहि मिलती । फूलन देवी जैसी महिला जो अपने ऊपर हुए अत्याचार के बाद आत्म हत्या नहि करती बल्कि अपराधियों को खड़ा करके गोली से उड़ा देती है । उसकी हत्या कर उसे भुला देना चाहते है। इस देश में बहुत सी महिलाओं ने आज की मॉर्डन महिलाओं के लिए रास्ते बनाए । पर उन्मे से अधिकतर बहुजन समाज की महिलाएँ थी इसलिए उन्हें याद नहि किया जाता है । और भुलाने की कोशिश की जाती है ।
महिलाओं ने काफ़ी प्रगति की है पर अभी भी महिलाओं की प्रगति, अधिकारों के लिए बहुत कुछ किया जाना शेष है। इसके लिए कुप्रथाओं, रूढ़ियों, अंधविश्वासों से मुक्ति पाना जरुरी है।
पुनः सभी को इस दिवस पर शुभकामनायें देता हूँ।
सुधीर सरोज ,मुंबई