‘जनेऊ’ पहनना ‘द्विजपन,जातीय वर्चस्व और दंभ की निशानी है. 1920 के दशक में बिहार के कई क्षेत्रों में यादव जाति ने जनेऊ धारण करने का आन्दोलन चलाया. फिर ‘सवर्णों’ ने इनका जबरदस्त विरोध किया, हिंसा हुई, पुलिस फायरिंग हुई इत्यादि. आजकल पिछड़ी जातियां भी जनेऊ पहनती है. अर्थात् जनेऊ का महत्त्व ही ख़त्म,वैसे भी आजकल कम लोग जो जनेऊ पहनते हैं, उसे लोग किस नज़र से देखते हैं आपको पता ही है.
सनद रहे, सहारनपुर मरोड़ का सबसे महत्वपूर्ण कारण यह बोर्ड ही है.
मेरे कहने का मतलब है जातीय दंभ और अहंकार के जीतने भी प्रतीक हैं उसे ध्वस्त कीजिए.इसलिए सभी जातियां को अपनी जाति के आगे ‘द ग्रेट’ लिखने की मुहीम चलानी चाहिए. अर्थात् जब सब ग्रेट तो ग्रेट शब्द दंभ और अहंकार ही अप्रासंगिक हो जायेगा. फेसबुक पर ही दो-चार ऐसा ही पोस्टर लगा कर देखिए, रिजल्ट पता लग जायेगा!!!
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ से चलकर मुंबई को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले माननीय राजेश पासी एक काबिल फाइनैंसियल एनालिस्ट है जो पिछले कई वर्षो से अंतराष्ट्रीय और राष्ट्रिय कंपनीयों में अपनी सेवाएं दे रहे है।बुद्ध और अम्बेडकर के अनुसरणी श्री पासी एक कुशल संघठनकर्ता और सामाजिक कार्यकर्त्ता के साथ साथ एक काबिल लेखक है ।जिन्हें लिखने की प्रेरणा अपने काबिल पिता श्री रामनारायण पासी जी से मिली जिन्होंने 1990 के दशक में विनय प्रभाकर , अर्जुन पंडित जैसे प्रसिद्ध नामों से कई उपन्यास लिखे थे । विनय प्रभाकर के मेजर नाना पाटेकर सीरीज के सारे उपन्यास श्री रामनारायण पासी जी ने ही लिखे थे ।उन्ही के सानिध्य में रहकर राजेश पासी जी ने लिखना सीखा ।फ़िलहाल बतौर लेखक आपकी सक्रियता ऑनलाइन ब्लॉग ,वेबसाइट और सोशल मीडिया पर है । इन पर प्रकाशित सामाजिक न्याय ,जागरूकता , शिक्षा , लिंगभेद, जातीय असमानता जैसे विषयों पर आपकी टिप्पड़ियाँ महीनों शेयर होती रहती है ।
View all posts by Rajesh Pasi