विरोध में लिखने पर क्या मैं मार दिया जाऊंगा ?

© संपादक की कलम से..

कभी कभी बहुत डर लगता है , जब किसी की ह्त्या इसलिए कि जाती है कि वह किसी धर्म अथवा संघठन से अलग विचार रखता है । देश में अभिब्यक्ति की आज़ादी का उल्टा दौर चल रहा है जिसका मुख्य कारण कट्टरपंथी धार्मिक राजनीति है । यह लोकतंत्र के लिए घातक है । किसी भी सभ्य समाज के लिए समानता बन्धुत्व ,न्याय , के साथ अभिब्यक्ति की अज़ादी उतना ही आवश्यक है जितना शरीर के लिए रक्त और दिमाग । केवल खोपड़ी और धमनियों के होने से क्या होगा ? अगर विचार नही ,संवेदना नही तो मेरी नज़र में वह मनुष्य नही ।

कोई भी लेखक ,पत्रकार, बुद्धजीवी देश की आत्मा होते है उनकी हत्या करना देश की हत्या करना है। हो सकता है ,आप किसी लेखक से सहमत न हो ,उनके विचारों से आपके विचार मेल न खाते हो , इसका यह मतलब तो नही की विरोधी विचार रखने वाले लेखक की ह्त्या कर दी जाएं। और एक महिला पत्रकार की हत्या पर अफ़सोस जताने के बजाय यह लिखे की ‘कुतिया कुत्ते की मौत कर गई ” या ‘ रंडी’ कह कर हत्या का समर्थन करना चाहिए ? यह समाज में कुछ लोगो का जंगली बन जाने का संकेत है।

कितने संवेदनहीन और मरे हुए है वे लोग जो विरोधी विचारों की महिला पत्रकार ग़ौरी लंकेश की हत्या को जायज़ ठहरा रहें है। सोशल मीडिया पर भ्रामक खबरें फैला रहे है । हत्या के विरोध में आवाज़ उठा रहें बुद्धजीवियों को धमकियां दिलवा रहें है।

यह सब बीटेक ,एमबीए के बेरोजगार नौजवानों को कुछ पैसा देकर कराया जा रहा है। जो ट्रोल करने के एक्सपर्ट बनाये गए है। जिन्हें सरकार कोई नौकरी नहीं दे पा रही है तो उन्हें पार्टी के आईटी सेल में इस शर्त पर रखा जाता है कि बिरोधी विचारों का दमन करने के लिए अफवाह फैलाना है। यह राष्ट्र सेवा भी है ? हताश ,निराश युवा धन और धर्म के नाम पर यह सब करने को मजबूर हैं ।

इसका परिणाम समाज को हिंसक बना देगा । फिर कोई भी नही बचेगा । जंगली जानवर की तरह सब एक दूसरे को मारने काटने वालें हो जाएंगे , तो फिर वें भी नही बचेंगे जो किसी महिला की हत्या पर कुतियाँ और रंडी जैसे शब्दों का प्रयोग करते है। और प्रधानमंत्री उसे फॉलो करते है , महिला केंद्रीयमंत्री ऐसे लफंगों के साथ फोटो खिंचवाती है। मुझे शर्म आती है और डर भी लगता है कि मैं ऐसे देश का नागरिक हुँ कि जहां अभिब्यक्ति की अज़ादी तो है लेकिन विरोध में लिखने पर मार दिया जाऊंगा ।

ध्यान रहें इस देश में धार्मिक कट्टरपंथी लोगों ने गाँधी को भी मारा था यह सोंच कर की उनका विचार मर जाएगा ? क्या बसवन्ना , जगदेव प्रसाद, दाभोलकर, पनसारे, कालबुर्गी को सच में मार पाए ? नही , वें जिंदा है हर आलोचक में ,पत्रकार में ,लेखक में जो इस देश को बेहतर बनाने का जज़्बा रखता है। विरोध का स्वर इस देश की आत्मा हैं उसे मारा नही जा सकता है । गौरी लंकेश को भी नही ।

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