क्या भगवान् कृष्ण का रिकार्ड तोड़ने का मंसूबा पालने वाले वीरेंद्र दीक्षित के उदय के लिए भागवत-मोदी जिम्मेवार नहीं हैं?
16,000 महिलाओं के स्वामी हिन्दुओं के भगवान कृष्ण के रिकार्ड की बराबरी करने का लक्ष्य लेकर रोजाना दस बच्चियों के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने वाले दिल्ली के धार्मिक माफिया बिरेन्द्र दीक्षित का रोमांचक कारनामा सामने आने के बाद आप निश्चित रूप से शर्मिंदगी महसूस कर रहे होंगे, यदि आप हम जैसों की भांति आंबेडकरवादी नहीं , गर्व से खुद को हिंदुत्ववादी मानने वाले हैं तो! यदि शर्मिंदगी महसूस कर रहे हैं, तो मेरे कुछ सवालों का जवाब देकर मुझे उपकृत करें?
क्या यह सच नहीं कि तमाम धर्मों के छोटे-बड़े धर्माधिकारी ही ईश्वर भीरु अवाम, खासकर महिलाओं का शोषण करते हैं. किन्तु इस मामले में हिन्दू धर्माधिकारी दुसरे धर्माधिकारियों से मीलों आगे हैं। ऐसे में क्या दावे से यह नहीं कह सकते कि इस किस्म के कुकर्मों में कमसे कम 75 % संलिप्तता हिन्दू और बाकी 30 % में गैर-हिन्दू धर्माधिकारी शामिल रहते हैं ? ब्राह्मण वीरेंद्र दीक्षित जैसों का कारनामा थोड़े-थोड़े अंतराल पर सामने आने के बावजूद बाबाओं के यहाँ भक्तों की भीड़ में कमी नहीं होती. क्या इसका कारण यह नहीं कि दैविक कृपालाभ का सबसे ज्यादा लालची हिन्दू ही होते हैं. इसीलिए मस्जिद-मजार- गिरजाघरो में माथा टेकने वाले हिन्दू इस लालचवश ही यह जानते हुए कि भारत के दैविक दलाल (बाबा-ब्राहमण ) निहायत ही कमीने हैं, वे इन divine-brokers के दरबारों में भीड़ करने से जरा भी बाज नहीं आते . क्या उनकी यह लालच ही उन्हें दरिदे धर्माधिकारियों का शिकार बनने का सबसे बड़ा कारण नहीं है?
थोड़े-थोड़े अंतराल पर हिन्दू आश्रमों, देवालयों के जो रोमांचक खुलासे सामने आते हैं, क्या उसके आधार पर यह दावा नहीं किया जा सकता कि प्राय ९० % हिन्दू आश्रम- देवालयों में कथित आध्यात्म के नाम पर पाप कर्म होता है ? भारत के ब्राहमणों ने देवालयों-आश्रमों- आध्यात्मिक विश्व विद्यालयों के जरिये जिस तरह विशाल आर्थिक सामराज्य कायम कर रखा है, उसके आधार पर क्या यह नहीं कहा जा सकता कि भारत के जन्मजात धर्माधिकारियों (ब्राह्मणों) ने ‘जगत मिथ्या-ब्रह्म सत्य’ का उपदेश देकर सबसे बड़ा झूठ बोला है ?
पिछली सदी में मंडल के खिलाफ धर्म को हथियार बनाने की परिकल्पना के तहत जिस तरह संघ परिवार ने अमानवीय हिन्दू-धर्म-संस्कृति व इसके वाहक साधू –संतों को बढ़ावा दिया , उसके बाद ही बाबाओं के आर्थिक साम्राज्य में लम्बवत विकास हुआ. संघ के सत्ता में आने के बाद बाबाओं में यह यकीं पुख्ता हुआ कि राष्ट्रवादी सरकारों के रहते कोई उन पर हाथ डालने का दुसाहस नहीं करेगा। संघ से मिले संरक्षण के कारण ही धर्म के आवरण में लिपटे सच्चिदानंद गिरी, इच्छाधारी भीमानंद ,नारायण साईं, राम-रहीम, निर्मल बाबा , आसाराम इत्यादि भूरि-भूरि भेड़ियों का उदय हुआ. ऐसे में क्या भगवान् कृष्ण का रिकार्ड तोड़ने का मंसूबा पालने वाले वीरेंद्र दीक्षित के उदय के लिए भागवत-मोदी जिम्मेवार नहीं हैं?
लेखक- hl dusadh