
अन्न की आजादी? शहरों के छोटे बड़े होटलों पार्टियों और शादियों में बर्बाद होने वाले खाने के बारे मे हमने सुना भी है और देखा भी। उन लोगों को तो खैर किसान की मेहनत और तकलीफ के बारे में तो पता नहीं होगा की बीज को खेत में डालने से लेकर अनाज के रूप में घर लाने तक उन्हें किन किन दुश्वारियां का सामना करना पड़ता है। बचपन की याद अभी ताजा है कि कैसे लोग। अन्न की कमी को महुआ के फूल सरसों का उबला साग एवं अन्य कई तरह के फल फूल से पूरी करते थे। पिताजी तो अपने बचपन की और भी भयावह तस्वीर बयां करते थे। एक-वो दिन था और एक आज का दिन शहरी लोगों की तो बात ही छोड़िए गांव देहात के मजदूर और किसानों तक के यहां अन्य की बेकद्री देखना अब आम बात है। उनके पालतू पशुओं को भी आजादी है कि वह जितना चाहे खाएं और जितना चाहे बर्बाद करें। और यह आजादी हर तरह की सुख सुविधा से वंचित इन घरों में उस अन्न की वजह से नहीं है जो वह अपना पसीना बहा कर उगाते है। ये है राशन कार्ड पर मिलने वाला मुफ्त या रियायती अन्न। यह अनाज कुछ कुछ घरों में तो पालतू पशुओं के चारे के रूप में प्रयोग होता है। और कुछ लोग उसे बनिए को देकर नोटों में परिवर्तित कर ले रहे हैं। अपनी वाहवाही स्वय करने वाली सरकारों ने क्या कभी यह पता लगाने की कोशिश की है कि उनके द्वारा वितरित अनाज का क्या और कैसे उपयोग हो रहा है।
रामनारायण पासी– संगीपुर ,प्रतापगढ़