भिखारी। शब्द।जेहन में। गूंजते ही। आंखों के सामने एक दीन हीन सा मैंले कुचाएले फ़टे कपड़ों मे लिपटे या तो एक निरीह इंसान की शक्ल नजर आती है या शारीरिक रूप से विकलांग व्यकित की। गेरुवा वस्त्र धारण कर स्वय को साधु संत घोसित करने वाले भले अपना जीवन यपान भिक्षा से चलाते हो पर स्वय को भिखारी मानने को कदआपि तयार नही होंगे। जबकि यह एकदम सीधी सी थ्योरी है जो हमे अपने श्रम के बदले मिलता है वह हमारी आय है। बाकी सब भीख है। आज के इस दौर मे ज्यदातर सरकारे लोगो को भिखारी बनाने पर तुली है। गरीबों के विकास के नाम पर उन्हे मुफ्त या रिययति अन्न धन मकान बांटने की तमाम योजनाएं निकाली गई है। किंतु अफसोस की गरीब के बच्चों को उच्च शिक्षा और उन्हें रोजगार मुहैया कराने की ईमानदार कोशिस एक आध सरकार को छोड़कर कोई सरकार नहीं कर रही है। अज्ञानता वश लोग भी लालच में आकर बिना श्रम के मिलने वाले धन मकान को भीख नहीं अपना अधिकार समझ रहे हैं। काश कि लोगों की आंखें खुलती और वे सरकारों से उच्च शिक्षा और रोजगार की मांग करते।
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रामनारायण जी को लेखन में कई सालों का अनुभव है ।आपने हिंदी उपन्यास कई नामों से लिखे है । जिनमें विनय प्रभाकर और अर्जुन पंडित जैसे बड़े नाम है । विनय प्रभाकर के नाम से आपने कई उपन्यास लिखे थे जिन्हें देश भर के हिंदी पाठक पढ़ा करते थे । विनय प्रभाकर की मेजर नाना पाटेकर की सारी सीरिज़ आपने ही लिखी थी । इसके अलावा न्यूज़ पेपर और कई पत्रिकाओं में भी लगातार लिखा करते थे । View all posts by ramnarayanpasi