शेषनाग के बारे में हमारे देश में बहुत कहानियाँ प्रचलित है ।आइए जानते है इतिहासकार और भाषा वैज्ञानिक राजेंद्र प्रसाद सिंघ जी की खोजें क्या कहती है
शेषनाग का पूरा नाम शेषदात नाग था। उनके पूरे नाम की जानकारी हमें ब्रिटिश म्यूजियम में रखे सिक्कों से मिलती है।
शेषनाग ने विदिशा को राजधानी बनाकर 110 ई.पू. में शेषनाग वंश की नींव डाली थी.”।
शेषनाग की मृत्यु 20 सालों तक शासन करने के बाद 90 ई. पू. में हुई। उसके बाद उनके पुत्र भोगिन राजा हुए, जिनका शासन – काल 90 ई. पू. से 80 ई. पू. तक था।
फिर चंद्राशु ( 80 ई. पू. – 50 ई. पू. ), तब धम्मवर्म्मन ( 50 ई. पू. – 40 ई. पू. ) और आखिर में वंगर ( 40 ई. पू. – 31ई. पू. ) ने शेषनाग वंश की बागडोर संभाली।
शेषनाग की चौथी पीढ़ी में वंगर थे। इस प्रकार शेषनाग वंश के कुल मिलाकर पाँच राजाओं ने कुल 80 सालों तक शासन किए…..
इन्हीं पाँच नाग राजाओं को पंचमुखी नाग के रूप में अमरावती स्तूप पर दर्शाया गया है।
शेषनाग बड़ा विचारशील राजा था, इसीलिए गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि मैं नागों में अनंत ( शेषनाग) हूँ।
शेषनाग बड़ा शक्तिशाली राजा था, इसीलिए लक्ष्मण को शेषावतार कहा जाता है।
शेषनाग बड़े साम्राज्य का मालिक था, इसीलिए कहा जाता है कि पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी है।
– राजेंद्र प्रसाद सिंघ जी की वॉल से