गाँव में लड़ाई झगड़े पर संपादक की त्वरित टिप्पणी –

प्रावसी लोग घर आएं हैं ! कुछ दिन तो कोरण्टीआइन थें । अब छूटे है , उनका जॉब कार्ड भी बना हैं कि वह नरेगा में काम करें ! खाली बैठे हैं ! कुछ मोटी चमड़ी वाले भी गाँव आएं हैं कई वर्षो से शहरों के रहकर कमाए हैं , उन्हें अभी काम भी नही चाहिए वह गांव तो आए हैं लेकिन उनका लगाव व समझ गाँव के प्रति नही हैं।

गाँव में तरह तरह की बातें हैं ! पीढ़ियों से चली आ रही अदावत हैं। शहरों में पढ़ने वालें युवाओं की टोली भी गांव पहुची हैं ! हर घर में मसल्स और मैंन पॉवर बढ़ गए हैं, जाहिर सी बात हैं कि घर वालों का हिम्मत भी बढ़ जाएगा । कोई किसी को बर्दाश्त नही करना चाहेगा ।

गरीब कमजोर वर्गों में जमीन ,जायदात के संसाधन कम हैं, कोई आर्थिक स्रोत भी नही ! इसलिए तो शहर गयें थें ! शांति से कमाने खाने ! इस दौरान रहन सहन के बैकल्पिक ब्यवस्था भी नही की !शायद जरूरत नही होगी ! किसी को क्या पता था फिर उसी गाँव में उसी परिवार के बीच आना पड़ेगा जिसे लड़ाई झगड़े के कारण अथवा अन्य कारण से छोड़ चुके थें ।

इस समस्याओं पर सबसे ज्यादा असर गरीबों और दलितों पर पड़ रहा हैं ,निश्चित तौर पर सरकार को स्थानीय प्रशासन को सक्रिय करना होगा और पुलिस गस्त बढ़ाकर इसे रोकना होगा वरना यह समस्या विकराल रूप धारण करेगी जिसका असर समाज व देश पर पड़ेगा ।
Ajay Prakash Saroj

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