
ओविसि और उसकी पार्टी के बारे में मुझे हमेशा लगता है की जो वह है वह दिखता नहि है , बाहर से कुछ और अंदर से कुछ और। बाहर से यह दिखता है की या भाजपा विरोधी और हिंदुवादी ताक़तों का विरोधी है पर असल में उनकी सहयोगी है ।
तब शंका प्रबल हुई थी जब छोटे ओवैसी ने 5 मिनट पोलिस हटाने वाला कमेंट किया था और अब औवैसी की पार्टी का कोई वारिस पठान है वह15 करोड़ मुस्लिम बनाम 100 करोड़ हिन्दू की चुनौती दे रहा है.
अब इस दंगाई आदमी के बयान को दंगापसंद चैनल दिन रात चलाएंगे और वही करेंगे जो इस उन्मादी माहौल के लिए बेहद अनुकूल है.
सीएए किसलिए लाया गया है….? ताकि समाज को धर्म के आधार पर बांटा जा सके. वारिस पठान ऐसा बयान क्यों दे रहा है? ताकि समाज को धर्म के आधार पर बांटा जा सके? बीजेपी के पक्ष में हिंदुओं की व्यापक गोलबंदी के लिए जरूरी है कि मुसलमानों को हिंदुओं के लिए खतरा साबित किया जाए. ओवैसी की पार्टी यह काम बखूबी कर रही है.
यह वारिस पठान नाम का धर्मांध आदमी चैनलों का भी बड़का दुलारा है, क्योंकि हर डिबेट में एक मुसलमान कठपुतली चाहिए होती है जो जहर उगलती रहे. हैदराबाद की एक छोटी सी पार्टी है. इसके बराबर उत्तर भारत में सौ पार्टियां हैं. इस पार्टी के नेताओं को चैनलों का दुलरुआ क्यों बनाया गया है?
ओवैसी के छोटे भाई ने इसी तरह का बयान दिया था, उसका कुछ नहीं बिगड़ा जबकि डॉक्टर काफिल जैसे इंसानियत के पक्षधरों को जेल में ढूंस दिया जाता है।
सरकार आम लोगों, बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों, वैचारिक विरोधियों को कुचल रही है, लेकिन वारिस पठान पर शायद ही कोई कार्रवाई हो. शरजील इमाम के भाषण में तो देशद्रोह जैसा कुछ नहीं था, फिर भी उसे जेल भेज दिया गया. यूपी में निर्दोष युवकों को मार दिया गया, लेकिन देशद्रोह लगाने के लिए असली मटीरियल तो वारिस पठान है जो जनता को सीधे तौर पर भड़का रहा है. क्या इस पर कोई कार्रवाई होगी? मुझे इसमें संदेह है.
ओवैसी पढ़े लिखे आदमी हैं, कानून राजनीति सब समझते हैं, बात भी ठीक ठाक करता है । पर इसकी पार्टी शक के दायरे में है इसकी पार्टी हिंदू वादी पार्टियों के फैलाव और जीत की गारंटी है.
इस देश की तमाम पार्टियां हैं जिनके नेताओं को मुसलमान और हिंदू सबका समर्थन मिलता है. सब नेता सभी तरह की जनता को संबोधित भी करते हैं. लेकिन यह आदमी कभी हिंदुओं को संबोधित नहीं करता. सिर्फ मुसलमानों की पार्टी बनकर यह आदमी कौन सी सियासत कर रहा है, यह समझना क्या मुश्किल है?

आज सीएए के विरोध में जिस सेकुलरिजम और लोकतंत्र की बात की जा रही है, वह हिंदू और मुसलमानों के आपसी सहयोग से ही संभव है. यह पार्टी 15 करोड़ बनाम 100 करोड़ की चुनौती देकर कौन सी राजनीति कर रही है?
सबसे दुखद है कि ऐसे उकसावे के बाद जब भी कभी दंगा होता है तो वारिस पठान जैसे धुर्त दंगाइयों का कुछ नहीं बिगड़ता, हमेशा गरीब ही मारे जाते हैं.
इसलिए साझेदारी से काम लेने की बात है हिंदू -मुसलमान फ़साद कराने के लिए दोंनो तरफ़ लोग है जो अपनी राजनीति चमकाना चाहतें है । आम जनता से इनका लेना देना नहि है । अगर होता तो शाहीन बाग़ में इनका स्वागत होता , लेकिन इन्हें वहाँघुसने और बोलने नहि दिया गया ।
नमो बुध्दाय जय भीम
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