अब LIC भी मुश्किल में है, क्या आपकी खून पसीने की कमाई डूबने वाली है?

LIC की ज़िंदगी में सब कुछ ठीक नहीं है. उसकी माली हालत ख़राब है. क्यों? क्योंकि बैंकों की तरह LIC के नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (NPAs) काफी बढ़ गए है. आसान भाषा में कहें तो लोग लोन लेकर चुका नहीं रहे हैं, जिससे बोझ बढ़ गया है. 30 सितंबर, 2019 तक LIC का NPA 30 हज़ार करोड़ रुपए हो गया है. बीते पांच सालों में ये दोगुना हो गया है.

NPA के मामले में LIC की हालत यस बैंक, एक्सिस बैंक और ICICI बैंक जैसी हो गई है. 2019-20 की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) में LIC का कुल NPA 6.10 फीसदी रहा. सितंबर, 2019 में 6.10 फीसदी की दर से कुल NPA पिछले पांच साल में दोगुना हो गया है. इस छमाही तक ये 30,000 करोड़ पहुंच चुका है. उससे पहले तक LIC 1.5-2 फीसदी NPA मेंटेन करता आया है.

इसके पीछे जो कंपनियां डिफॉल्टर हैं, वो वही हैं जो बैंकों में भी NPA के लिए जिम्मेदार हैं. इनमें डेक्कन क्रॉनिकल, एस्सार पोर्ट, आलोक इंडस्ट्रीज, एमट्रैक ऑटो, एबीजी शिपयार्ड, यूनिटेक, जीवीके पॉवर और जीटीएल हैं. LIC के बढ़ते NPA की वजह अनिल अंबानी की रिलायंस और DHFL को दिया गया भारी-भरकम लोन भी माना जा रहा है. LIC कॉरपोरेट्स को टर्म लोन और नॉन कनवर्टिबल डिबेंचर्स के ज़रिए कर्ज़ देती है. इनमें से ज़्यादातर मामलों में LIC को ज़्यादा कुछ मिलने की उम्मीद भी नहीं है.

पिछले वित्तीय वर्ष (2018-19) में 31 मार्च तक LIC का NPA 24,777 करोड़ रुपए था. तब तक के आंकड़ों के अनुसार, इसने 4 लाख करोड़ रुपए का कर्ज़ दिया था. इसमें से दिक्कत वाले एसेट्स का आंकड़ा 16,690 करोड़ रुपये का था, लॉस एसेट्स का 6,772 करोड़ रुपए का था और सब-स्टैंडर्ड एसेट्स का आंकड़ा 1,312 करोड़ रुपए का था.

NPA क्या होता है?

बैंक (इस मामले में LIC) ने अगर किसी को लोन दिया है तो ये उसके लिए एक एसेट या पूंजी है क्योंकि ब्याज से उसकी कमाई होती है. जिसने लोन लिया होता है, उसके लिए लायबिलिटी होती है कि वो लोन चुकाए. जब ये समय पर चुकाए जाते हैं तब इन्हें स्टैंडर्ड एसेट कहते हैं. अगर कोई लोन की किस्त 90 दिनों तक या एक तय सीमा तक नहीं भरता है तो उस लोन को NPA कहते हैं. इसका मतलब है बैंक के लिए इससे कमाई बंद हो गई और ये बैंक के लिए NPA हो गया. इसकी वसूली के लिए बैंक गिरवी रखी गई चीज़, संपत्ति या कंपनी (कंपनी के शेयर) को बेचकर पैसे रिकवर करता है. इसके लिए इन्हें तीन भागों में बांटा जाता है- दिक्कत वाले एसेट्स, लॉस एसेट्स, सब-स्टैंडर्ड एसेट्स. NPA को कम से कम रखना बैंक का लक्ष्य होता है क्योंकि अगर ये बढ़ जाएं तो लोन देने की शक्ति कम हो जाती है और बैंक की आर्थिक हालत ख़राब हो जाती है. यही LIC के साथ भी हो रहा है.

हालाँकि चिंता वाली बात तो है पर बात इतनी बड़ी नहि हुई है की LIC मुश्किल से निकल ना पाए । LIC और SBI दोंनो बहुत बड़े जहाज है जिस दिन यह डूबेंगे फिर कोई नहि बचेगा पूरी अर्थ वयस्था डूब जाएगी। इसलिए फ़िलहाल बहुत जयदा चिंता वाली बात नहि दिख रही है ।

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s