जनवरी के दूसरे दिन पूर्व सांसद देवी प्रसाद त्रिपाठी ऊर्फ डीपीटी भी चल बसे। जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष त्रिपाठी जीवन पर्यंत धारा के खिलाफ रहे। राज्यसभा में उनके विदाई भाषण में यह बात साबित भी हुई। इस भाषण ने माननीयों को चौंका दिया था। उन्होंने सवाल किया कि संसद में सेक्स पर बात क्यों नहीं होती? सदन को उन मुद्दों पर भी चर्चा करनी चाहिए, जिस पर समाज खुलकर बोलने से घबराता है। इनमें सेक्स सबसे ऊपर आता है, जिस देश ने दुनिया को कामसूत्र दिया हो, वही आज इस पर चर्चा से क्यों घबराता है? जबकि गांधी जी और लोहिया ने भी इस पर बात की थी। सेक्स से जुड़ी बीमारियों के चलते मौतें होती हैं, लेकिन कभी इस पर बात नहीं हुई। जिस देश में कामसूत्र जैसी पुस्तक लिखी गई थी, वहां की संसद में सेक्स जैसे विषय पर कभी बात नहीं की गई। इस पुस्तक को लिखने वाले वात्स्यायन को ऋषि का दर्जा प्राप्त था। अजंता-अलोरा की गुफाएं और खजुराहो के स्मारक इसी पर समर्पित हैं, लेकिन कभी संसद तक में यह मसला नहीं उठा। 1968 में राजनीति में आए डीपी त्रिपाठी को संसद के अच्छे वक्ताओं में शुमार किया जाता था।
इस फलसफे पर एक नाटक का जिक्र जरूरी है। यह नाटक है-किस्सा योनि का। इसका एक संवाद है- बहुत टेंशन है….टेंशन तो हम सबको है….और सबकी टेंशन की एक ही वजह है….योनि…। यह नाटक अमेरिकी नाटककार इव एंसलर के मशहूर और विवादित ‘द वैजाइना मोनोलॉग्स’ पर आधारित है। अपने देश में इस नाटक के मंचन की शुरुआत पहले अंग्रेजी में हुई थी। कुछ सालों से यह हिंदी में भी किया जा रहा है। हिंदी में इसका निर्देशन महाबानो मोदी कोतवाल और उनके बेटे कायजाद कोतवाल ने किया है।
इस नाटक के अनुवादक जयदीप सरकार हैं। वह कहते हैं कि भारत जैसा देश, जहां सेक्स को गंदा माना जाता है और इस बारे में झिझक कर, कानाफूसी करके बात की जाती है, वहां सबसे बड़ी चुनौती ऐसे संवेदनशील मुद्दे का अनुवाद था। हमारी संस्कृति में यौन संबंधों के बारे में बिना किसी शर्म के जिक्र है। खजुराहो है। कृष्ण की रासलीला में भी इसकी छाप मिलती है। इस विषय को हमने अश्लील बनाया है। इरादा अश्लील हो सकता है। मगर मुद्दा कतई अश्लील नहीं है। वर्षा अग्निहोत्री कुछ साल से इस नाटक में अभिनय कर रही हैं। इस नाटक में हिंदी भाषा और बोलियों में महिला जननांगों और यौन संबंधों से जुड़े कई प्रचलित शब्दों, यहां तक कि गालियों का भी इस्तेमाल हुआ है।
विश्व मंच पर अपनी जगह बनाने की कोशिश करते 21वीं सदी के आधुनिक भारत में महिलाओं और बच्चियों के बलात्कार और यौन हिंसा के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। समाज के डर और सदियों की सोच के चलते इनके बारे में बात करने में भी महिलाएं हिचकिचाती हैं। डरती हैं। पूर्व राज्यसभा सदस्य त्रिपाठी की पीड़ा यही थी कि संसद में इस विषय पर इसीलिए चर्चा होनी चाहिए। दोस्तो ‘किस्सा योनि का’ इन वर्जनाओं को तोड़ने की शुरुआत कहा जा सकता है।
दोस्तो, भारत के शहरी क्षेत्र में एक खास तबका भले ही यौन स्वतंत्रता का पक्षधर हो, लेकिन उपन्यास ‘रिवाइज्ड कामसूत्र’ के लेखक रिचर्ड क्रास्टा के अनुसार अधिकतर भारतीयों के लिए सेक्स अब भी एक वर्जित शब्द है। क्रास्टा सच ही कह रहे हैं। भारत की धरती में कामसूत्र रचा गया। कामसूत्र दुनिया की पहली यौन संहिता है। इसकी रचना के बाद वात्स्यायन महर्षि हो जाते हैं। कामसूत्र में यौन प्रेम के मनोशारीरिक सिद्धांतों प्रयोगों की विस्तार से व्याख्या की गई है। पांचवीं सदी की यह महान संहिता कालजयी है। दो हजार साल बाद भी कामसूत्र सबसे प्रमाणिक किताब मानी जाती है। शायद बहुतों को न पता हो कि वात्स्यायन मरते दम तक ब्रह्मचारी रहे। उन्होंने यह किताब वेश्यालयों में जाकर देखी गई मुद्राओं और वेश्याओं से बात करके लिखी। उन्होंने तो कभी इस तरह की गतिविधियों में न तो हिस्सा लिया और न ही इसका आनंद लिया। प्रख्यात लेखिका वेंडी डोनिगर ने अपनी किताब रिडिमिंग द कामसूत्रा में विस्तार से महर्षि वात्सयायन के बारे में चर्चा की है।
इतिहासकारों का मानना है कि इस किताब को पढ़ने से सेक्स ज्ञान निःसंदेह बढ़ता है। दुनियाभर में अब इस किताब को रेफर किया जाता है। सत्रह शताब्दियों से कामसूत्र का जादू दुनिया में छाया हुआ है। संसार की हर भाषा में इस यौन संहिता का अनुवाद हो चुका है। कोई 200 वर्ष पूर्व प्रसिद्ध भाषाविद् सर रिचर्ड एफ़ बर्टन ने जब ब्रिटेन में इसका अंग्रेजी अनुवाद करवाया तो तहलका मच गया। एक-एक प्रति 100 से 150 पौंड तक में बिकी। अजंता एलोरा की गुफाएं और खजुराहो के मंदिर कामसूत्र से अनुप्राणित है। रीतिकालीन कवियों ने कामसूत्र की मनोहारी झांकियां प्रस्तुत की हैं। गीत गोविन्द के गायक जयदेव ने अपनी लघु पुस्तिका ‘रतिमंजरी’ में कामसूत्र का सार संक्षेप प्रस्तुत कर अपने काव्य कौशल का अद्भुत परिचय दिया है।
वात्स्यायन ने कामसूत्र में मुख्यतया धर्म, अर्थ और काम की व्याख्या की है। वात्स्यायन का दावा है कि यह शास्त्र पति-पत्नी के धार्मिक, सामाजिक नियमों का शिक्षक है। कामसूत्र सात भागों में है। यौन मिलन का भाग ‘संप्रयोगिकम्’ है। इसमें 69 यौन आसनों का वर्णन है। इस ग्रंथ का अधिकांश हिस्सा काम के दर्शन के बारे में है। काम की उत्पत्ति कैसे होती है, कामेच्छा कैसे जागृत रहती है, काम क्यों और कैसे अच्छा या बुरा हो सकता है।[
दरअसल ‘काम’ एक विस्तृत अवधारणा है, न केवल यौन-आनन्द। काम के अन्तर्गत सभी इन्द्रियों और भावनाओं से अनुभव किया जाने वाला आनन्द निहित है। गुलाब का इत्र, अच्छी तरह से बनाया गया खाना, त्वचा पर रेशम का स्पर्श, संगीत, किसी महान गायक की वाणी, वसन्त का आनन्द – सभी काम के अन्तर्गत आते हैं। यह ग्रंथ सूत्रात्मक है। ग्रंथ के प्रणयन का उद्देश्य लोकयात्रा का निर्वाह है, न कि राग की अभिवद्धि।
द्वितीय अधिकरण का नाम साम्प्रयोगिक है। ‘सम्प्रयोग’ को अर्थ सम्भोग होता है। इस अधिकरण में स्त्री-पुरुष के सम्भोग विषय की ही व्याख्या विभिन्न रूप से की गई है, इसलिए इसका नाम ‘साम्प्रयोगिक’ रखा गया है। इस अधिकरण में दस अध्याय और सत्रह प्रकरण हैं। कामसूत्रकार ने बताया है कि पुरुष अर्थ, धर्म और काम इन तीनों वर्गों को प्राप्त करने के लिए स्त्री को अवश्य प्राप्त करे किन्तु जब तक सम्भोग कला का सम्यक् ज्ञान नहीं होता है तब तक त्रिवर्ग की प्राप्ति समुचित रूप से नहीं हो सकती है और न आनन्द का उपभोग ही किया जा सकता है। तीसरे अधिकरण का नाम कन्यासम्प्रयुक्तक है । इसमें बताया गया है कि नायक को कैसी कन्या से विवाह करना चाहिए। उससे प्रथम किस प्रकार परिचय प्राप्त कर प्रेम-सम्बन्ध स्थापित किया जाए? किन उपायों से उसे आकृष्ट कर अपनी विश्वासपात्री प्रेमिका बनाया जाए और फिर उससे विवाह किया जाए। इस अधिकरण में पाँच अध्याय और नौ प्रकरण हैं। उल्लिखित नौ प्रकरणों को सुखी दाम्पत्य जीवन की कुंजी ही समझना चाहिए। बहरहाल देवी प्रसाद त्रिपाठी तो इस दुनिया से कूच कर गए पर उनका सवाल आज भी फिजा में तैर रहा है।
- अभिषेक पांडेय