क्या सांप दूध पीते हैं?
जी नहीं, साँप दूध नहीं पीते ǀ आप कह सकतें हैं कि “आप क्या बात करतें हैं, हमनें कितनीं ही बार सपेरों (साँप पकडनें वाले) को दूध पिलाते देखा है”ǀ हाँ, आपनें अवश्य देखा होगा लेकिन उसकी वास्तविकता कुछ और ही हैǀ
पहले मैं आपको यह बता दूँ कि साँप दूध क्यों नहीं पीते? प्रकृति अपनें में ‘परफेक्ट’ और मितव्ययी हैǀ अर्थात वह प्राणियों में उन्हीं अंगों और रसायनों का निर्माण करती है जिसकी उस प्राणी को आवश्यकता होती हैǀ साँप के आमाशय या आँत में दूध को पचा सकनें वाले रसायन का निर्माण ही नहीं होता अतः दूध का पाचन संभव नहीं ǀ जिस भोजन का पाचन प्राणी नहीं कर पाता उसका सेवन भी नहीं करता ǀ अतः साँप भी दूध नहीं पीता ǀ
अब दूसरी बात कि क्या पी सकता है? तो उसका भी उत्तर है कि नहीं, क्यों कि लचीले गालों की अनुपस्थिति में वह तरल पदार्थों को मुँह में खींच नहीं सकता तथापि निचले जबड़े से जुडी बहुत सी त्वचा की सिकुड़न स्पंज की तरह पानीं को शोषित कर मुँह में डाल सकती है (Cundall, David. Drinking in Snakes: Resolving a Biomechanical Puzzel, 2012, Lehigh Univ , News Article), परन्तु दूध को नहीं क्यों कि दूध एक ‘कोल्याड़ल सल्यूशन’ होनें के कारण पानीं की सापेक्ष काफी गाढ़ा होता है/
सपेरे नाग पंचमी से एक महीने पहले से ही साँपों को पकड़ना प्रारम्भ कर देते है और इन्हे भूखा रखतेǀसाँप अपनीं पानी की जरूरत अपनें शिकार के शरीर में उपस्थित पानी से करता है और बहुत विवशता या फिर बहुत दिनों से शिकार न मिलनें पर प्यास से जूझ रहा हो तब ही वो किसी तरल पदार्थ की ओर आकर्षित होता है ǀ बहुत दिनों से भूखा-प्यासा साँप न केवल कमजोर हो जाता है वरन डिहाइड्रेशन का भी शिकार हो जाता हैǀ अब जब पीड़ित साँप के मुँह को दूध के पात्र में डाला जाता है तो ‘मरता क्या न करता’ की हालत में कुछ दूध वो पी लेता है लेकिन तुरंत ही अपना मुँह हटा लेता है ǀ लेकिन सपेरे को तो आज दिन भर उसी साँप को दूध पिलाना हैǀ तो वो क्या करता है, देखिये –
अब आता हूँ तीसरी बात पर कि फिर ये सपेरे क्या करतें है?उसका मैं चित्रों के माध्यम से बतानें का प्रयास करता हूँ –
चित्र संख्या ०१
चित्र संख्या ०२
पहले चित्र में ‘क्यू’ क्लिप के बीच में एक नली का खुला सिरा दिखाई दे रहा हैǀ यह ‘ग्लोटिस’ है और जो नली दिखाई दे रही है वह ‘ट्रैकिया’ या ‘विंड़ पाईप’ या स्वाँस नली हैǀ जैसा कि दोनों चित्रों में दिखाई दे रहा है कि ‘ग्लोटिस’ निचले जबड़े में सबसे आगे की ओर खुलता है और जब जबड़े बंद होते हैं तो खिंच कर बाहर तक पहुँच जाता हैǀ ‘ट्रैकिया’ या ‘विंड़ पाईप’ या स्वाँस नली एक लम्बी संरचना होती है और ह्रदय के पास पहुँच कर दो भागों में विभक्त हो जाती है – एक बाँया भाग और दूसरा दाहिना भागǀ दोनों भाग अपनी और के फेफड़ों से जुड़े रहते हैं ǀ बायाँ फेफड़ा छोटा और अविकसित होता है जब कि दाहिना पूर्ण विकसित और बहुत लम्बा होता हैǀ इसका हृदय की और का भाग स्वसन में भाग लेता है जब की पीछे वाला भाग एक गुब्बारे जैसा ही होता है जिसमे हवा भरी तो रह सकती है परन्तु उस भाग में स्वसन नहीं होता हैǀ वायु इसी क्रम में फेफड़ों में आती है और इसके विपरीत क्रम में बाहर जाती है ǀ नीचे दिया चित्र संख्या ०३ देखें
चित्र संख्या ०३
अब जब सपेरे को दूसरी–तीसरी जगह साँप दूध पिलाना है तो वो साँप को नीचे दिखाये गये तरीके से पकड़ता है
चित्र संख्या ०४
चित्र संख्या ०५
स्वांस नली दबाव के कारण बंद हो जाती है ǀआठ-दस मिनट में उसके फेफड़े की ऑक्सीजन समाप्त होनें लगती है और अब जब सपेरा साँप के मुँह को दूध के पात्र में डालता है तो सांस खीचनें के साथ दूध उसके फेफड़ों में भर जाता है ǀ पात्र कुछ खाली हो जाता है और हम नाग देवता का आशीर्वाद मान खुश होतें है और अपनें ‘नाग देवता’ को धीमी परन्तु निश्चित मौत की ओर प्रयाण करनें के लिए हर्षित मन से बिदा कर देते हे ǀ
सपेरे जब साँपों को पकड़ते हैं तो सर्व प्रथम ज़हर के दाँत तोड़ देते है, उसकी पीड़ा, फिर भूख-प्यास की तड़प और अंत में जब दूध या तो पेट में गया या फिर फेफड़े मेंǀ पेट में जानें पर दूध की प्रोटीन और पानीं अलग हो गया ǀ पानीं से लाभ हुआ कि डिहाइड्रेशन की समस्या कुछ कम हुयी परन्तु प्रोटीन का पाचन तो संभव ही नहीं और दूसरी ओर मुँह घायल अतः कुछ निगला भी नहीं जा सकता तो फिर कमजोर तो हो ही जाना है ǀ अब यदि दूध फेफेड़े में जमा हो गया जिसकी संभावना रहती ही रहती है, तो साँस भी नहीं ली जा सकती और तब उन नाग देवता को जिनकी हमनें 15-20 दिन पहले पूजा की थी हमनें ही स्वर्ग की राह दिखा दी ǀ अब यह तो आप ही निर्णय लें कि आपको श्राप मिला या आशीर्वादǀ मैनें इस प्रश्न के उत्तर के माध्यम से अपनीं बात आप सभी तक पहुँचानें का एक प्रयास किया है ǀ
एक अपील
पाठकों अपील करना चाहता हूँ कि हमें धातु से निर्मित या फिर चित्र के माध्यम से अपनीं आस्था समर्पित करनीं चाहिये ǀ प्रकृति हम सब के लिये हैǀ हम इस सुन्दर कृति का संरक्षण कर प्रकृति का संतुलन बनाये रखनें में अपना सहयोग प्रदान करें ǀ हम संकल्प लें कि आगामी ‘नाग पंचमी’ से हम अपनीं पूजा से नाग की मृत्यु का कारण नहीं बनेंगे और यह बात घर–घर पहुँचायेंगेǀ
नोट: ऊपर प्रस्तुत सभी चित्र ‘नाग’ के नहीं हैं ǀ अपनीं बात को आपतक पहुँचानें के लिए ‘गूगल’ की सहायता के लिए आभारी हूँ ǀ
साभार : वेंकटेश शुक्ला ( Quara )