°अतिपिछड़ों की पार्टियों को स्थापित नही होने देना चाहतें हैं अखिलेश ?

यूपी गठबंधन में लगातार नराजगियों का सिलसिला जारी हैं। एक तरफ तो उत्तर प्रदेश में सपा बसपा का गठबंधन यह संदेश देना चाहता है कि भाजपा की गलत नीतियों के कारण उसे सत्ता से बेदखल करना बहुत ही आवश्यक है लेकिन दूसरी तरफ सपा बसपा गठबंधन के सहारे दलितों पिछड़ों की वोटरों की गोलबंदी करने में बहुत ज्यादा सफलता नहीं पा रहे हैं
. पिछले साल गोरखपुर में हुए उपचुनाव में बीजेपी की गढ़ माने जाने वाली सीट पर निषाद पार्टी के नेता इंजीनियर निषाद को साइकिल चुनाव निशान पर लड़ने को मजबूर किया गया । क्योंकि उप चुनाव में निषाद बाहुल गोरखपुर लोकसभा में निषाद पार्टी चाहतीं थीं कि समाजवादी पार्टी गोरखपुर में निषाद पार्टी को समर्थन करें लेकिन अखिलेश यादव नही मानें ।
अंततः इस बात पर सहमति बन गई कि निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद अपनी पार्टी चलाए लेकिन उनके पुत्र को सांसद बनना है तो समाजवादी सपा के सिंबल पर चुनाव लड़ें । इसके बाद अखिलेश यादव ने प्रवीण निषाद को साइकिल चुनाव निशान देकर निषाद पार्टी-पीस पार्टी तथा बाद में बहुजन समाज पार्टी के सहयोग से अपनी पार्टी का सांसद बनाने में कामयाब हो गयें । लेकिन अब निषाद पार्टी अपने जातीय बाहुलता वाली सीट गोरखपुर और महराजगंज समझौते में चाहतीं थीं लेकिन अखिलेश यादव ने मना कर दिया । तो नराज निषाद पार्टी विरोध गुट बीजेपी से हाथ मिलाने का फैसला कर लिया ।

ऐसा ही राजनीतिक घटनाक्रम फूलपुर के उप चुनाव में हुआ उस समय सपा-कांग्रेस का गठबंधन था माना जा रहा था कि फूलपुर में गठबंधन की तरफ से कांग्रेस का उम्मीदवार होगा जिससे समाजवादी का समर्थन प्राप्त होगा लेकिन अखिलेश यादव ने कांग्रेस को गच्चा देकर यहाँ नागेन्द्र पटेल के रूप में अपना प्रत्याशी खड़ा कर दिया, बसपा का सहयोग पाकर यह सीट भी सपा ने अपने पाले में झटक लिए । सवाल यह हैं कि जिन सीटों पर अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी में निषाद ,कुर्मी प्रत्याशी उतार कर अन्य जातियों सहित मुस्लिम के सहयोग से जीत दर्ज कर यूपी में गठबंधन की ज़मीन तैयार की उन सांसदों का टिकट क्यों काटना पड़ रहा हैं ?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रभाव वाली सीट गोरखपुर को जीत कर संदेश दिया कि अगर दलितों पिछड़ों और मुसलमानों की एकता कायम हो जाएं तो बीजेपी को सत्ता से बाहर किया जा सकता हैं। जिसमे कामयाबी भी मिल गईं । लेकिन गठबंधन के लिए नींव का पहला पत्थर रखने वालें लोकसभा गोरखपुर और फूलपुर के सांसदों का टिकट समाजवादी पार्टी ने काट दिया ।जबकि अखिलेश यादव पहले कई बार स्पष्ट कर चुके थे कि इन दोनों का टिकट नही कटेगा ?

उप चुनाव में गोरखपुर से प्रवीण निषाद और फूलपुर से नागेंद्र सिंह पटेल के बहाने प्रदेश मे सपा-बसपा के कार्यकता आपस मे नजदीक आएं थें । लेकिन निषाद व कुर्मी जैसे पिछड़े नेताओं को समाजवादी पार्टी बहुत दिनों तक बर्दास्त नही कर सकीं । यह अलग बात हैं कि इन सीटों पर इन्ही के जाति के अन्य नेताओँ को टिकट दिया जाएं ? लेकिन राजनैतिक विश्वनीयता की कमी तथा पैंतरेबाजी के चलते पिछड़ों की समस्त जातियों की गोलबंदी करने में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव कमज़ोर होते जा रहें हैं।
फूलपुर लोकसभा में नागेंद्र सिंह पटेल ने कम समय मे जनता के बीच अपनी बेहतर छबि बनाने में कामयाब रहें हैं उनकी सरलता और सुलभता की चर्चा क्षेत्र में होती रहती हैं। चर्चा तो यह है कि फूलपुर से मुलायाम परिवार से कोई चेहरा चुनाव में उतारा ज सकता हैं जिसमे मैनपुरी सांसद तेज प्रताप यादव का नाम पार्टी में लिया जा रहा हैं। ऐसा होता है तो नागेंद्र पटेल की उपेक्षा ही कहीं जा सकती है।

अखिलेश यादव दूसरी पिछड़े और मुस्लिम पार्टियों को सिर्फ इस्तेमाल कर खुद को मजबूत करना तो चाहते हैं लेकिन उन्हें भागीदारी नही देना चाहतें ? क्योकि उपेक्षित सेकुलर वोट कांग्रेस की तरफ़ भागेगा तो अन्य पिछड़ा वर्ग बीजेपी में रास्ता खोजेगा और भाजपा चुनाव के समय झुककर गठबंधन करने में माहिर है। लेकिन गठबंधन की अकड़ जातीय चेतना से लैस हो चुकी जातियों का विखराव रोकने में समर्थ नजर नही आ रहीं हैं। अगर ऐसा होता रहा तो इसका फायदा सीधे बीजेपी उठायेंगी ।
लेख लिखते यह खबर आ रही है कि प्रवीण निषाद बीजेपी में शामिल हो गए,गठबंधन के यह बुरी खबर है। निषाद बिगत दिनों समाजवादी कार्यकर्ताओ के साथ इलाहाबाद में लाठिया खाये थेंन लेकिन अखिलेश यादव उनका टिकट काटकर अपना कुनबा छोटा कर लिया
