हज़ारों सालों से भारत में यह बात प्रचलित है की गौतम बुद्ध ने अपना आख़िरी भोजन के तौर पर सुअर का माँस खाया था ।
प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक राजेंद्र प्रसाद सिंघ जी ने इस पर प्रश्न चिन्ह लगाया है । उन्होंने भाषा के ज़रिए यह बात साबित करने की कोशिश की है की यह बात सत्य नहीं है ।
वह बताते है की गौतम बुद्ध की मृत्यु के कोई हजार साल बाद यह बात चर्चा में आई कि वे अंतिम भोजन सूअर का माँस किए थे।
वे बुद्धघोष थे, जिन्होंने अपनी पुस्तक ” सुमंगलविलासिनी ” में पहली बार सूकर मद्दव का अर्थ सूअर का माँस किए थे।यह किताब संस्कृत में लिखी थी ।
राजेंद्र प्रसाद जी का कहना है पाली भाषा से संस्कृत में अनुवाद करते समय यह गड़बड़ हुई है । जिसे अब तक सच माना गया है ।
वह कहते है की यह वही बात हुई जैसे कोई अंग्रेज़ भिंडी खाए तो वह उसे लेडी फ़िंगर कहेगा और हम इसका अर्थ ” हिंदी में स्त्री की ऊँगली ” खाना कर दे क्योंकि अंग्रेजी में वह Lady finger है। अर्थ सही है पर क्या वह स्त्री की अंगुली खा रहा था ?
बुद्ध की मृत्यु के हजार साल बाद यह अर्थ का अनर्थ है वरना हमारे पास सूअर का माँस खाने का कोई सबूत नहीं है और ऐसा कभी बुद्धघोष से पहले कहा भी नहीं गया है।
वैसे भी बुद्धघोष के पहले फहियाँन आए थे और उनके ग्रंथो में सुअर का ज़िक्र कही नहीं किया गया है । यह बुद्ध घोष ही थे जिन्होंने सूकर मद्दव का अर्थ सुअर का माँस कर दिया ।
बुद्ध ने अपने आख़िरी भोजन सुकर मद्दव ही किया था जिसे सुअर का माँस बता दिया गया ।
जब और डिटेल में जाते है तो पता चलता है की पाली में माँस का मंस कहते है ना की मद्दव।
सुकर मद्दव एक प्रकार की मशरूम भी होती है जिसपे सुअर जैसे बाल होते है । संभवतः उन्होंने मशरूम ही खाई थी । यह इससे भी सिद्ध होता है की पाली भाषा में सूक्र मद्दव का मतलब कोई वनस्पति या बल्क जो जमीन में उगता है ऐसा भी बौद्ध साहित्यों में उल्लेख मिलता हैं।
बहुत सारे कंद भी पशुओं के नाम पर हैं जैसे महिषकंद, अश्वकंद, हाथीकंद, शूकरकंद …. आदि आदि. और वैसे भी सनकृत में सुअर को वरहा बोलते है यदि संस्क्रत के ग्रन्थ में शूकर लिखा है तो कुछ गड़बड़ है!
राजेंद्र प्रसाद की वाल पर सुमित मौर्य लिखते है -सूकर मद्दव > कुकुर मुत्ता > आधुनिक मशरूम.
कुछ – कुछ ऐसी है विकास यात्रा मशरूम (saprophytic plant) की।
तथागत बुद्ध को अर्पित किया गया सूकर मद्दव संभवतः किसी विषैले जीव के मृत शरीर के अंशो पर उगा रहा होगा
जिसे चुंद जान न पाये हों किन्तु भोजनोपरान्त बुद्ध विषाक्तता को समझ गए । अतः किसी अन्य को अब न परोसने के लिए चुंद से कहा।
विक्रम जी लिखते है – कुछ शब्द रूढ़ि हैं जिनका अर्थ आज की भाषा मे निकलना मुश्किल है।
जैसे कि कुकुरमुत्ता।लोग अर्थ निकालते हैं कि कुत्ते के मूतने से उगता है कुकुरमुत्ता।
मगर ऐसा नही।
मेरे ख्याल से यह मुत्ता शब्द माद्दव का ही रूप है
माद्दव (मार्दव) का सेंस गूदा या फ्लैस से भी है
मेरे ख्याल से यह सूगर माद्दव मशरूम ही रहा होगा
यदुनंदन लाल लिखते है – बुद्ध ने सुअर कंद खायी थी। उत्तर भारत में सुगर कंद कहते हैं ।इसे सुअर बड़े चाव से खाते हैं। इसलिए सुअर कंद कहते हैं
राजेंद्र प्रसाद जी कहते है अतीत में काफ़ी शब्दों का हेर फेर किया गया है जैसे गौतम बुद्ध की माँ का वास्तविक नाम था, महामाया नाम बाद का है। जैसे बुद्ध का सिद्धार्थ नाम बाद का है, पहले का नाम सुकिति है। जैसे बुद्ध की पत्नी का यशोधरा नाम बाद का है, पहले का नाम कच्चाना है। महामाया, सिद्धार्थ और यशोधरा जैसे नाम बुद्ध की जीवनी में तब जुड़े, जब संस्कृत का आगमन हुआ।
इसलिए सुकर मद्दव का सुअर का माँस हो गया ।अब तक खोजबीन नहीं होती थी । पर अब धीरे धीरे झूठ से पर्दा हटाने में बहुत से लोग लगे हुए है ।
नोट: यह लेख राजेंद्र प्रसाद जी की सोश्यल मेडिया की एक पोस्ट और उन पर आए कमेंट को आधार बना कर लिखा गया है ।अगर किसी को कोई अप्पति हो तो कृपया ईमेल या कमेंट करे । लेख हटा दिया जाएगा ।email- rajesh.pasi@gmail.com
हम ने स्टडी में पाया चुन्द नामक सोनार के यहां सुकर मांस को खा लेने महात्मा बुद्ध की स्वास्थ्य बिगड़ने लगी और वो बीमार हो और मृत्यु हुई है.
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सुकर मद्दव एक प्रकार की मशरूम भी होती है जिसपे सुअर जैसे बाल होते है । संभवतः उन्होंने मशरूम ही खाई थी ।
यतेंद्र लाल वर्मा जी के द्वारा बताया गया सूअर कंद ही है और वह विषैला था इसीलिए तथागत बुद्ध की मृत्यु हुई नाकी सूअर का मांस था।
जरा सोचिए कि चुन्द जिसके यहां खाने के लिए अनेक प्रकार के भोजन उपलब्ध थे अच्छी सुविधाएं थी क्या वह भगवान बुद्ध को सूअर का मांस भोजन में खिलाता
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Sukar madhav Masroom hota hai jo ki pahle chandan ke ped pe hota tha ur log khate the chandan ka ped hamesha sital hota hai aur us pe humesha snakes hote hai jiske karan woh jahrila ho jata hai islie unhone khane se mana kia
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यतेंद्र लाल वर्मा जी के द्वारा बताया गया सूअर कंद ही है और वह विषैला था इसीलिए तथागत बुद्ध की मृत्यु हुई नाकी सूअर का मांस था।
जरा सोचिए कि चुन्द जिसके यहां खाने के लिए अनेक प्रकार के भोजन उपलब्ध थे अच्छी सुविधाएं थी क्या वह भगवान बुद्ध को सूअर का मांस भोजन में खिलाता
और फिर ऐसा भी हो सकता है कि जिस प्रकार मनुवादी ब्राह्मण वादी लोगों ने नकली बौद्ध भिक्षु बन कर बौद्ध भिक्षुओं के ऊपर भ्रष्टाचार करते रहे इसी प्रकार नकली ही व्यक्ति ब्राह्मणवादी हो सकता है उसी ने ऐसा पुस्तकों में लिख दिया हो कि भगवान बुद्ध ने सुअर का मांस खाया था और इसीलिए उनकी मृत्यु हो गई
ऐसे अनेकों इसके उदाहरण हैं यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं है ऐसा हो सकता है संभव है
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सही कह रहे है सर आप । काफ़ी सालों से इन लोगों ने दुशप्रचार कर रखा था । अच्छा है कि राजेंद्र प्रसाद जैसे लोग सच्चाई सामने ला रहे है ।
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Gautam budh सूअर मास कैसे खा सकते थे वह शाकाहारी थे, शकरकंद को sanskrit पंडित ने सुअर कन्द लिख दिया है
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मुझे यदुनंदन लाल वर्मा जी की बात में दम लगता है यही लगभग सत्य है
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