युद्ध युद्ध चिल्लाने के मायने !

यह चित्र उन मध्यवर्गीय युद्धोन्मादियों के लिए जो अपने ड्राइंग रूमों में आरामदेह सोफों में चूतड़ धँसाये हुए पॉपकॉर्न खाते हुए टीवी देखते हुए चीखते-चिल्लाते पूँजी के टुकड़खोर एंकरों के साथ मुँह से गाज फेंकते हुए “युद्ध-युद्ध” चीखने लगते हैं और फिर “एक के बदले दस सिर” का नारा लगते हुए अपने मोहल्ले में घूमने लगते हैं तथा निरीहों-कमजोरों को आतंकित करने लगते हैं ! ऐसे लोगों के लिए युद्ध एक टीवी प्रोग्राम मात्र है, जो इनकी रुग्ण-दुर्बल धमनियों में खून का प्रवाह कुछ देर को तेज़ कर देता है और इन्हें उत्तेजना का सुख देता है ! ये उन्मादी पूँजी की खूँख्वार सत्ता का सबसे बड़ा सामाजिक आधार होते हैं ! फासिस्ट गुण्डा-वाहिनियों के गैंग-लीडर भी इन्हीं के बीच से भरती होते हैं ! इन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि युद्ध में दोनों ओर से तोपों का चारा गरीबों के वे बेटे बनते हैं जो “पापी पेट” के लिए फ़ौज की नौकरी करते हैं ! पूँजीवादी दुनिया में अलग-अलग देशों के शासक वर्ग अपने हितों के लिए युद्ध लड़ते हैं ! युद्ध बाज़ार के लिए लड़े जाते हैं, क्षेत्रीय चौधराहट के लिए लड़े जाते हैं, हथियारों की बिक्री करके मुनाफ़ा कूटने और कमीशन खाने के लिए लड़े जाते हैं और बुनियादी समस्याओं से जनता का ध्यान हटाने के लिए लड़े जाते हैं ! पूँजी की दुनिया में युद्ध भी मुख्यतः पूँजी-निवेश और मुनाफ़ा निचोड़ने का एक माध्यम होते हैं ।

आम जनता इन बातों को न समझ सके, इसके लिए उसे बीच-बीच में “देशभक्ति” का हेवी डोज़ दे दिया जाता है I सच्ची देशभक्ति देश की बहुसंख्यक आम मेहनतक़श जनता को प्यार करना और उसके हितों के बारे में सोचना है, जाति-धर्म-क्षेत्र आदि के नाम पर उनके बीच पैदा होने वाले विवादों-झगड़ों को मिटाना है और उनके मुश्तरका दुश्मन– लुटेरों-मुनाफाखोरों-मुफ्तखोरों के ख़िलाफ़ उनकी एकता को मज़बूत बनाना है; क्योंकि याद रखो, देश आम लोगों से ही बनता है ! इसलिए असली युद्ध तो उनके ख़िलाफ़ लड़ा जाना है जो तुम्हारे सिर पर बैठे हुए तुम्हें लड़ने का आदेश दे रहे हैं ! यह युद्ध अन्यायपूर्ण युद्ध और उसके कारणों के विरुद्ध न्यायपूर्ण युद्ध होगा , यह प्रतिक्रियावादी शक्तियों के विरुद्ध क्रांतिकारी युद्ध होगा ! यह युद्ध वैचारिक युद्ध के रूप में होगा, रूढ़ियों-कुरीतियों-अज्ञान के विरुद्ध सांस्कृतिक-सामाजिक आन्दोलनों के रूप में होगा, अपने हक की छोटी-छोटी लड़ाइयाँ लड़ते हुए आगे बढ़ते जाने के रूप में होगा और जब बहुसंख्यक जनता आतताइयों के विरुद्ध उठ खड़ी होगी तो फिर उनसे सत्ता छीनकर एक नया समाज बनाने हेतु निर्णायक संघर्ष के रूप में होगा ! अगर आप उस न्यायपूर्ण युद्ध के पक्ष में हैं तो आपको सभी अन्यायपूर्ण युद्धों के ख़िलाफ़ उठ खड़ा होना होगा जिसमें दोनों ओर से गरीबों के बेटे मरते हैं और थैलीशाहों की तिजोरियाँ ठसाठस भरती चली जाती हैं !

~ Kavita Krishnapallavi

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