दिल्ली विश्वविद्यालय में विश्विद्यालय की नौकरियों में एससी,एसटी और ओबीसी वर्ग के लिए विभागवार रिजर्वेशन रोस्टर लागू करने के खिलाफ इन वर्गों के शिक्षक और शोधार्थियों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखने के खिलाफ आक्रोश मार्च निकाला।
आक्रोश मार्च में हजारों की संख्या में दलित-बहुजन एवं प्रगतिशील समझ के शिक्षक और शोधार्थियों ने हिस्सा लिया। आपको बता दें कि एससी,एसटी और ओबीसी समुदाय के लिए पहले विश्विद्यालय में शिक्षण के पदों पर विश्विद्यालय को एक इकाई मानकर 200 पॉइंट रिजर्वेशन रोस्टर के तहत आरक्षण देने की व्यवस्था थी। इस व्यवस्था को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अप्रैल, 2017 को एक केस की सुनवाई के दौरान बदलते हुए यह फैसला दिया कि रिजर्वेशन विभागवार दिया जाना चाहिए।
इस फैसले को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने देश के सभी विश्वविद्यालयों को एक पत्र भेजकर लागू करने का आदेश दिया। विश्विद्यालय अनुदान आयोग ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले को लागू करने का आदेश एक साल बाद 5 मार्च,2018 को सभी विश्विद्यालयों को दिया। आयोग ने कहा इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के अनुसार विभागवार रिजर्वेशन रोस्टर लागू किया जाए और इसके अनुसार ही नियुक्तियां शुरू की जाएं। इस आदेश के बाद देश भर के विश्विद्यालयों ने आनन-फानन अपने यहां शिक्षण पदों पर खाली पड़े पदों के लिये विज्ञापन निकालना शुरू कर दिया। विभागवार रिजर्वेशन रोस्टर के आधार पर एससी, एसटी और ओबीसी पदों की संख्या शून्य हो गयी और सामान्य पदों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो गयी।
विज्ञापन आने के बाद दलित- बहुजन समुदाय के शिक्षक और शोधकर्ताओं ने इसका विरोध किया। इन समुदायों के विरोध प्रर्दशन से सरकार दबाव में आई। मानव संसाधन मंत्रालय ने कहा कि सरकार एससी,एसटी और ओबीसी के नौकरियों में प्रतिनिधित्व के लिए कृतसंकल्प है। मंत्रालय इस मसले पर एक अध्यादेश लाकर इन समुदायों की हिस्सेदारी को सुनिश्चित करेगा। लेकिन सरकार अध्यादेश नहीं लायी। सरकार और विश्विद्यालय अनुदान आयोग ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी (short leave petition) दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और विश्विद्यालय अनुदान आयोग की पिटीशन को 9 महीने तक सुनवाई के लिये एडमिट ही नहीं किया।
इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के अतिथि अध्यापक डॉ अरुण कुमार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ 19 जनवरी,2019 को व्यक्तिगत याचिका दायर की। तदुपरांत सुप्रीम कोर्ट ने डॉ अरुण कुमार की याचिका को सरकार और विश्विद्यालय अनुदान आयोग की एसएलपी के साथ जोड़कर सुनवाई के लिए 22 जनवरी,2019 की तिथि निर्धारित की। 22 जनवरी,2019 को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाकर्ताओं, डॉ अरुण कुमार, मानव संसाधन विकास मंत्रालय तथा विश्विद्यालय अनुदान आयोग की याचिकाओं को ख़ारिज करते हुए रिजर्वेशन रोस्टर पर इलाहबाद हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। इस फैसले से देश के दलित-बहुजन तबकों में आक्रोश है।
इस फैसले के खिलाफ आज दिल्ली विश्वविद्यालय में दलित,आदिवासी और पिछड़े समुदाय के शिक्षकों, शोधकर्ताओं और छात्र संगठनों ने आक्रोश मार्च निकाला। उन्होंने सरकार को इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए रिजर्वेशन रोस्टर पर तत्काल अध्यादेश लाने की मांग की है। उन्होंने मांग की है कि रिजर्वेशन रोस्टर पर 200 पॉइंट रोस्टर पध्दति लागू की जाए। उनकी इस मांग का कई राजनीतिक दलों और उनके नेताओं ने समर्थन किया है। इनमें राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल(राजद),समाजवादी पार्टी प्रमुख हैं।
इसके साथ ही दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के साथ डेमोक्रेटिक टीचर्स एसोसिएशन के साथ ही अन्य शिक्षक संगठनों ने भी इस मामले पर अध्यादेश लाने की मांग की है।
ऐसा न होने पर आज इन समुदायों ने आंदोलन तेज करने और साथ ही 28 मार्च को देशव्यापी प्रतिरोध का आवाहन किया है। कल दिल्ली विश्वविद्यालय में ही शाम को 5 बजे सभा के साथ कैंडिल मार्च के आयोजन का प्रस्ताव भी सभी सहयोगी संगठनों ने दिया है।
रिपोर्ट- राम चन्द्र ,शोध छात्र