आपको पता चल ही गया होगा कि आज सुप्रीम कोर्ट ने एम एच आर डी एवं यूजीसी की रोस्टर सम्बन्धी एसएलपी को खारिज कर दिया। मैं उस समय सुप्रीम कोर्ट में मौजूद था। पूरी बहस को सुनने के बाद यही महसूस किया कि सरकार ने लचर पैरवी के कारण इस केस को डिसमिस करवाने में मदद की।
सरकारी वकील जज महोदय को यह नही बता पाए कि रोस्टर कैसे बनता है? आरक्षण को कैसे लागू किया जाता है? विभाग को आरक्षण का आधार बनाने पर उसके क्या दुष्प्रभाव होंगे? हमने भी एक पेटिशन डाली थी जिसके माध्यम से यह बतलाने की कोशिश कि थी विवेकानंद तिवारी पर जो फैसला है वह कैसे कुछ फैसलों को नजरअंदाज कर दिया गया है। लेकिन उसे भी सुनने से इनकार कर दिया गया और वह भी पेटिशन खारिज हो गई। अब हम सबको गम्भीरता से सोचना पड़ेगा कि हम कैसे शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षित वर्गों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करा पाएंगे? यह बहुत गम्भीर मुद्दा है। यदि हम इसका समाधान नहीं निकलवा पाए तो अगली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी।
डॉ.अरुण कुमार, दिल्ली विश्वविद्यालय