ये तस्वीर खींचने वाले कल्पित भचेच का कहना है कि 11 साल पुरानी तस्वीर फिर वायरल होने की वजह सोशल मीडिया है. लेकिन उस दिन क्या हुआ था, जब ये तस्वीर खींची गई, ये ख़ुद गुजरात के वरिष्ठ फ़ोटो पत्रकार कल्पित भचेच ने बताया. आप भी पढ़िए:
”पत्रकारिता में किस-किस तरह के संयोग बन जाते हैं, ये कहानी इसी के बारे में है.
वो दिन 12 सितंबर, 2007 था. मेरे जन्मदिन से एक दिन पहले. मैं सवेरे नौ बजे घर से निकला. उस दिन पत्नी ने बोला था कि रात को समय से घर आ जाना क्योंकि कल आपका जन्मदिन है और रात 12 बजे केक काटेंगे.
मैं काफ़ी खुश होकर घर से निकला. कुछ ही देर में मेरे मोबाइल पर अहमदाबाद के मणिनगर के जीएनसी स्कूल से कॉल आया
कॉल स्कूल की प्रिंसिपल रीटा बहन पंड्या का था. उन्होंने कहा कि स्कूली बच्चों के साथ वो लोग वृद्धाश्रम जा रहे हैं. और क्या मैं इस दौरे को कवर करने के लिए आ सकता हूं.
मैं तैयार हो गया और वहां से घोड़ासर के मणिलाल गांधी वृद्धाश्रम पहुंचा.
वहां एक तरफ़ बच्चे बैठे थे और दूसरी तरफ़ वृद्ध लोग थे. मैंने आग्रह किया कि बच्चों और वृद्धों को साथ-साथ बैठा दिया जाए ताकि मैं अच्छी तस्वीरें ले सकूं.
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KALPIT S BHACHECH
जैसे ही बच्चे खड़े हुए, एक स्कूली बच्ची वहां मौजूद एक वृद्ध महिला की तरफ़ देखकर फूट-फूट कर रोने लगी.
हैरानी की बात ये थी कि सामने बैठी वृद्धा भी उस बच्ची को देखकर रोने लगी. और तभी बच्ची दौड़कर वृद्ध महिला के गले लग गई और ये देखकर वहां मौजूद सभी लोग हैरान रह गए.
मैंने उसी वक़्त ये तस्वीर अपने कैमरे में कैद कर ली. और फिर जाकर महिला से पूछा तो रोते हुए उन्होंने जवाब दिया कि वो दोनों दादी-पोती हैं.
बच्ची ने भी रोते हुए बताया कि ये महिला उसकी बा हैं. गुजराती में दादी को बा बोला जाता है. बच्ची ने ये भी बताया कि दादी के बिना उसकी ज़िंदगी काफ़ी सूनी हो गई थी.
और ये भी बताया कि बच्ची के पिता ने उसे बताया था कि उसकी दादी रिश्तेदारों से मिलने गई है. लेकिन जब वो वृद्धाश्रम पहुंची तो पता चला कि असल में दादी कहां गई थी.
दादी और पोती का वो मिलन देखकर मेरे साथ खड़े और लोगों की आंखें भी नम हो गईं. उस माहौल को हल्का बनाने के लिए कुछ बच्चों ने भजन गाने शुरू किए.
ये फ़ोटो अगले दिन दिव्य भास्कर अख़बार के पहले पन्ने पर छपी थी और उस वक़्त पूरे गुजरात में इसे लेकर चर्चा शुरू हो गई. इस तस्वीर ने कई लोगों को हिलाकर रख दिया.
मेरे तीस साल के करियर में पहली बार ऐसा हुआ कि मेरी कोई तस्वीर अखबार में छपने के दिन मुझे एक हज़ार से ज़्यादा लोगों ने फ़ोन किए. उस समय पूरे राज्य में इसी तस्वीर पर चर्चा हो रही थी.
लेकिन जब दूसरे दिन मैं दूसरे मीडियाकर्मियों के साथ इस वृद्ध महिला का इंटरव्यू लेने पहुंचा तो उन्होंने कहा कि वो अपनी मर्ज़ी से वृद्धाश्रम आई हैं और मर्ज़ी से वहां रह रही हैं.”
दरअसल, ये तस्वीर हाल की नहीं बल्कि 11 साल पुरानी साल 2007 की है. जगह का नाम है अहमदाबाद के घोड़ासर में स्थित वृद्धाश्रम.
बीबीसी ने इस तस्वीर में नज़र आ रही दादी दमयंति और पोती भक्ति से अहमदाबाद के उसी वृद्धाश्रम में जाकर बातचीत की.
भक्ति ने बीबीसी संवाददाता तेजस से ख़ास बातचीत में कहा, ”मैं यह कहना चाहूंगी कि मेरी दादी अपनी मर्ज़ी से वृद्धाश्रम में रह रही हैं और उन्हें किसी ने यहां भेजा नहीं था. मुझे पता नहीं था कि वो कहां होंगी, ये पता था कि वो जा रही हैं, लेकिन किस वृद्धाश्रम में होंगी, ये नहीं पता था.”
भक्ति ने 11 साल पुराने वाकये को याद करते हुए बताया, ”मैं भावुक थी और रोने लगी. दादी से मेरी बॉन्डिंग बहुत थी और अब भी है, माता-पिता से ज़्यादा से मैं उन्हें प्यार करती हूं.”
सोशल मीडिया पर कई लोगों ने सवाल उठाए हैं कि दादी को अब घर क्यों नहीं ले जा सकते, इस पर उन्होंने कहा, ”अब घर ले जाने का मतलब नहीं है क्योंकि उन्हें यहां रहना अच्छा लगता है. यहां उनकी एक फ़ैमिली सी बन गई है.”
”वो यहां खुश हैं और हम हर रोज़ बात करते हैं. मेरे माता-पिता के घर भी जाती हैं दादी. जो लोग मेरे पापा के बारे में गलत अनुमान लगा रहे हैं, ऐसा नहीं है. ऐसा होता तो मैं उनसे रिश्ता नहीं रखतीं.”
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दादी-पोती की पुरानी तस्वीर खींचने वाले फ़ोटोग्राफ़र कल्पित
12 सितंबर, साल 2007 को याद करते हुए उन्होंने कहा, ”मैं स्कूल से आई थी. ग्रैंडपैरेंट्स डे था उस दिन. मुझे नहीं पता था कि वो अचानक मिल जाएंगी. वो आने वाली थी, ये पता था लेकिन ये नहीं पता था कि कहां मिलेंगी. वो नहीं चाहती थी कि हमें पता लगे वो कहां हैं. हम दोनों इमोशनल थे, इसलिए रोने लगे.”
11 साल बाद फ़ोटो वायरल होने के बारे में भक्ति ने कहा, ”संवेदनाएं बहुत अच्छी हैं. लेकिन मेरे पैरेंटस के लिए जो लिखा जा रहा है, वो अच्छा नहीं है. कई ऐसे लोग हैं जो अपनी मर्ज़ी से वृद्धाश्रम में रहते हैं. उन्हें कोई छोड़कर नहीं जाता. मेरी दादी भी ऐसी ही हैं.”
दादी दमंयति बेन का भी कुछ यही कहना है. उन्होंने कहा, ”मैं अपनी मर्ज़ी से यहां रह रही हूं. हमारे बीच कोई नफ़रत नहीं थी. ऐसा नहीं था कि मुझे घर से निकाल दिया गया था. मैं शांति से रहना चाहती थी, इसलिए यहां आईं.”
”मैं घर जाती हूं, घरवाले यहां आते हैं. भगवान का नाम लेती हूं. शांति से यहां रहती हूं. कोई दूसरी बात नहीं है. मेरा लड़का रोज़ मुझसे बात करता है. तबीयत पूछता है. बहु भी अच्छी है. नाश्ता लेकर आती है. जब साथ रहती थी और जो लगाव तब था, वही आज है.”
ghar ke bade log apne baccho ki buraiya bhi duniya se chupate hai. shayad isi liye dadi ne aisa kaha ho
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सही कहा आपने । यही बात लगती है
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Meri bhi kavitaye aise rishto par hi h plese padiye aap apne suggestion dijiye
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जी ज़रूर
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