मुझे जौनपुर जिले का एक वायरल हो रहा फोटो मिला है जिसमे एक मेज पर चार लोग कुछ खाते हुए दिख रहे हैं।
एक ही डायनिग टेबल पर एक शख्स थाली में खा रहे है जबकि तीन सम्मानित लोग पत्तल में खा रहे हैं।
वायरल हो रहे इस फोटो के साथ इन महानुभावों का परिचय भी लिखा हुआ है जो इस प्रकार है-जो शख्स थाली में खा रहे है वे इस दावत के कथित मेजबान और समाजवादी पार्टी के जौनपुर जनपद के पूर्व विधायक श्री ओमप्रकाश बाबा दूबे है।
अन्य तीन सम्मानित सज्जन गण जो मेहमान है वे श्री रमापति यादव (पूर्व ब्लाक प्रमुख),श्री राजबहादुर यादव (अध्यक्ष-जिला पंचायत,जौनपुर) एवं श्री उमाशंकर यादव (पूर्व विधायक) हैं।
इस फोटो को देखने के बाद मुझे तो कुछ बुरा नही लगा क्योकि आप जिसके घर खाने गए हैं, उसकी इच्छा से ही आप खाएंगे,न कि अपनी इच्छा से।
यदि अपने इच्छा से आपको खाना है तो अपने घर खाइए, कौन रोकने जाता है पर यदि आप किसी के घर दावत उड़ाने गए हैं तो स्वभाविक है वह अपनी परम्परा,मान्यता और आपकी जातीय स्थिति के हिसाब से ही आपको खिलायेगा।
ओमप्रकाश “बाबा” दूबे जी एक तो भूसुर अर्थात पृथ्वी के देवता है और दूसरे जाति से बाबा के साथ-साथ उपनाम से भी बाबा हैं, मतलब डबल ‘”बाबा” हैं।
एक तरफ डबल बाबा और दूसरी तरफ ट्रिपल यादव फिर तो आपको डबल बाबा जी के वहां पत्तल में खाना ही पड़ेगा।
बाबा दूबे जी के वहां खाते हुए डायनिग टेबल पर जो फोटो छपा है वह कितना निरोग है कि सभी सज्जन जान-बूझकर खुशी-खुशी फोटो भी सेशन करवा रहे हैं।
कितनी गरिमापूर्ण स्थिति है दोनों तरफ?
बाबा दूबे जी को गर्व है कि मैंने इन यादव जी लोगो को अपने घर खूब ठीक तरीके से पत्तल में खिलाते हुए आव-भगत कर दिया तो तीनों यादव जी लोग भी कितने गौरवान्वित हैं कि हम लोग बाबा दूबे जी के मेहमान बन उनके घर खाने का सुअवसर प्राप्त कर लिए।
इस फोटो के निहितार्थ कोई कुछ भी निकाले लेकिन मैं समझता हूं कि जो बाबा दूबे जी सपा मुखिया श्री अखिलेश यादव जी का दुख-दर्द हरने,उनकी व लोगो की विपत्तियों को दूर करने हेतु साधु-संतों की कृपा बरसवाते हों,उनका मेहमान होना ही बहुत बड़ा मायने रखता है।
तीनों यादव जी लोग भले ही पत्तल में खाने को पाए लेकिन यह उनका परम् सौभाग्य है कि वे लोग बाबा दूबे जी के मेहमान बन गए।मैं एक बार फिर कहूंगा कि भारत जातियों का देश है जहां जाति ही श्रेष्ठ और निम्न है जिसे चाहे अम्बेडकर हो या फुले,रामनरेश यादव हो या कर्पूरी ठाकुर, मुलायम सिंह यादव हो या लालू प्रसाद यादव,मायावती हो या अखिलेश यादव, सबने भोगा है और आगे भी भोगना पड़ेगा।
बाबा दूबे जी का व्यवहार सनातन पन्थ के मुताबिक सर्वथा उचित है।
यदि हम हिन्दू हैं तो इस कार्य व्यवहार को सनातन परम्परा मानते हुए स्वीकारना होगा।
यह सवाल बेमानी है कि पत्तल में खाने वाले पूर्व प्रमुख, जिला पंचायत अध्यक्ष या पूर्व विधायक हैं क्योंकि वे कुछ भी हैं सबसे पहले “अहीर” हैं।
लेखक- चन्द्रभूषण सिंह यादव सोशलिस्ट फैक्टर पत्रिका के कंट्रीब्यूटिंग एडिटर हैं, यह लेखक के निजी विचार हैं.
आपका दर्द में समझ सकता हूँ , लेकिन अब भारत जागरूक हो रहा है , जातिप्रथा के खिलाफ लोग खुल कर सामने आ रहे है। और आपको आश्चर्य होगा यह जानकर की सवर्ण लोग ही जाति प्रथा के खिलाफ सबसे ज्यादा आवाज़ उठाये हुए है।
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काश ऐसा हो पाता ! आपको ऐसा कहाँ दिखा कुछ उदाहरण हमें भी दिखाए। कुछ अपवाद हो सकते है ९५% से जयदा सवर्ण या तो जाती के समर्थक है या ग़लत देख कर भी चुप बैठे है । एक भी आंदोलन सववर्ण ने नहि किया जाती ख़त्म करने के लिए या समानता स्थापित करने के लिए । जबकि छोटे से आरक्षण के लिए देश भर में कितने ही आंदोलन हुए है ।
अमेरिका में गोरे लोगों ने काले लोगों के हक़ लिए आंदोलन किए ,सड़कों पर उतरे , उनके लिए गोलियाँ खाई , साउथ अफ़्रीका ने पिछले साल संसद में क़ानून पास करके गोरे लोगों से ज़मीन लेकर काले लोगों में फ़्री में बाँट दी । यह है समानता के लिए क़दम । क्या हमारे भारत में सवर्ण ऐसा कर सकते है ।
आज भी हालत यह है की जनसंख्या जयदा होने के बावजूद अगर आरक्षण ना हो तो एक भी बहुजन संसद में नहि पहुँच पाएगा । ५०० सांसद में से कितने पिछड़े वर्ग से है सिर्फ़ १३९ वह भी सिर्फ़ आरक्षण की वजह से और आप कहते है सवर्ण विरोध कर रहे है जाती का ?
मीडिया , न्याय पालिका , सरकार कहाँ है इनका प्रतिनिधित्व ।
उना में जव बहुजन को मारा गया था , जब उन्हें घोड़ी पर बैठने नहि दिया जाता ,कितने सवर्ण विरोध करते है ,कौन सवर्ण आंदोलन करता है इनके विरोध में …????
मन में सोचना अच्छा लगता है ..पर हक़ीक़त में ..??
कुछ सवर्ण सचमुच समझ रहे है की यह ग़लत है ..पर अपने ही लोगों के विरोध में जा कर वह बहुजन के हक़ के लिए आवाज़ नहि उठा पाते …!!!
सवर्ण जाती का विरोध तब जाएँगे जब जातियाँ उनके लिए नुक़सान दायक बनेगी …अभी तो उनके लिए फ़ायदा है …
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