पुणे :पत्थरबाजी के पीछेका एक बड़ा कारण है की बहुजन समाज आपना इतिहास जान समझ रहा है उससे प्रेरणा ले रहा है और इन हिंदुओं के देविदेवता पूजा पाठ बुवा बाबा महाराज से दूर हो रहा है साथ ही साथ धार्मिक उत्सव मेले जैसे कुंभ मेला या रावणदहन होता है उससे दूर होता जा रहा है तो बामनों पंडे पुजारियों का रोजगार ठप्प होने का डर है साथ उसपे चलनेवाले मनुवादी व्यापारीयों का व्यापार भी चौपट हो जाएगा..
दूसरी बात हर इंसान उत्सव प्रिय होता है आपने समाज के साथ एक होने की ख़ुशी पाना चाहता है तो कोई भी उत्सव एक बहाना होता है मिलने का उस ख़ुशी को पाने का अब जबकि लोगों को आपने जाने हुए इतिहास के चलते 1 जानेवारी 14 ऑक्टोबर 6 दिसम्बर ये एक होने के उत्सव मनाने या अभिवादन करने के मौके दे रहे है जिससे भी ये मनुवादी भयभीत है /हो रहे है अब इन मौकों की जगह क्या होता है ये भी आप देख लीजिए कल का ही उदाहरण बताती हूँ भीमा कोरेगाव में गाड़ियां पार्क करने किसी किसान ने आपना खेत उपलब्ध कर दिया था धान की कटाई करके क्यों की उसे धान से ज्यादा पार्किंग के पैसे मिलनेवाले थे साथ ही साथ स्थानिक गरीब बहुजन लोगों का ऐसे दिनों व्यापार सौगुना ज्यादा होता है जिसके व्यापारी बहुजन समाज के वहां के स्थानिक लोग होते है और सबसे महत्वपूर्ण बात उस दिन किताबों का करोड़ों का व्यापार होता है कल ही के दिन कितने लोगों को किताबे खत्म होने की वजह से मिल नही पाए क्या ऐसा माहौल पंडे पुजारियों के उत्सव त्यौहारों में देखने को मिलता है ? फिर ये भी सुनने में आया है की भीमा कोरेगाँव 262 एकड़ जमीन भीमा-कोरेगाव संस्थान को वापिस करने की मांग होने लगी है तो फिर सोच के देखे मनुवादी ये ना हो पाए इसलिए किस हद तक गिर सकते है . रेखा सुर