पुणे:दुनिया के इतिहास में महत्वपूर्ण युद्ध में से एक 1818 में 1 जनवरी 1818 में लड़ा गया युद्ध जिसमें सिर्फ़ 500 महारो ने 28000 पेशवा सैनिकों को परास्त कर दिया था । इस युद्ध ने भारत में मनुवादीयों द्वारा किए जाने वाले अमावनिय व्यवहार का आक्रोश साफ़ दिखाई दिया था की जब अत्याचार बढ़ जाता है तो क्या होता है ।
हर साल 1 जनवरी को भीमा कोरे गाँव में विजय स्तंभ को सम्मान देने के लिए लाखों लोग पहुँचते है । इस साल इसके 200 साल पूरे हो रहे थे इस लिए यह आयोजन काफ़ी बृहद था । देश के कोने कोने से लोग यहाँ पहुँच रहे थे ।
पर देश की वह शक्तियाँ जिन्हें समता वादी विचारों से नफ़रत है इस आयोजन से काफ़ी ख़फ़ा थे । इसलिए षड्यंत्र करके 1 जनवरी 2018 की सुबह ही भीमा कोर गाँव के रास्ते पर जम कर आगज़नी और पत्थर बाज़ी की गई ।
शिकरपुर गाँव और पेरने फाटा के पास जम कर उत्पात मचाया गया ।रिपोर्ट के मुताबिक़ 50 से ज़्यादा वाहन तोड़े गए और तक़रीबन 25 गाड़ियों में आग लगाई गई ।मनुवादीयों का प्लान था की दहशत का माहौल बनाया जाय ताकि लोग विजय स्तम्भ तक न पहुँचे और वापस लौट जायें। इसलिए सड़कों पर अवरोध किया गया ।
पर बहुजन कहाँ रुकने वाले थे बिना डरे जैसे जैसे लोग की भीड़ वहाँ पहुँचने लगे उपद्रवी वहाँ से हट गए । इसलिए दोपहर तक सब कुछ शांत हो गया ।
जो हरकतें की गई थी अगर बाबा साहेब और बुद्ध के विचार लोगों के दिल में न होते तो रास्ते में पड़ने वाले मनुवादियों के एक भी गाँव न बचते । लाखों की भीड़ अगर बदले की भावना आ जाती तो आस पास के इलाक़े में सैकड़ों लोगों की जान पर बन आती । पर यह बुद्ध और बाबा साहेब को मानने वाले लोग थे न ग़लत करते है न करने देते है । हमने कितने ही उदाहरण देखे है जहाँ सवर्ण ने गाँव के गाँव में आग लगा दी है उजाड़ दिए है पर यह बुद्ध और बाबा साहेब के विचारों का ही असर था की इतना कुछ होने के बाद भी कोई प्रतिक्रिया नहि दी गई।
भीमा कोरे गाँव का महत्व इस देश में बहुत है इसलिए बाबा साहेब भी हर साल यहाँ आते थे ।
इंडिया टुडे के पूर्व सम्पादक दिलीप मंडल जी लिखते है “भीमा कोरेगांव न होता, तो यह देश न बनता. वहीं तय हुआ कि इस भौगोलिक हिस्से में रहने वाला हर आदमी, आदमी है. उसे आदमी मानना होगा, इंसान की गरिमा देनी होगी, उसे गुलाम मानना बंद करना होगा, वरना वह बगावत कर देगा और 500 लोग मिलकर 28,000 को खत्म कर देंगे.
भीमा कोरेगांव के बिना भारत का इतिहास पूरा नहीं है. बाबा साहेब भीमा कोरेगांव यू ही नहीं जाते थे.”
अच्छी बात रही की सुबह इतना उपद्रव होने के बाद भी बहूजनो को शालीनता और बौधिकता की वजह से पूरा आयोजन अच्छी तरह से बीत गया । और एक अच्छा संदेश भी देश को दिया गया ।