आज के जनसन्देश टाइम्स में शरद यादव जी का एक लेख छपा है, शीषक है:’43 साल में कभी नहीं देखा ऐसा संकट’. इसमें उन्होंने लिखा है ,’
मैंने अपने 43 साल के संसदीय जीवन में इतने भयानक हालात कभी नहीं देखे.। ये जो सरकार बनी है, उसका कोई आर्थिक विजन ही नहीं है.संघ के लोग कहते थे कि हमारा संगठन सांस्कृतिक है , तो सरकार भी सांस्कृतिक हो गयी है.
शहर से लेकर गांव तक, पेंशन से लेकर गरीब आदमी के अनाज तक , छोटे धंधे से लेकर उद्योग-धंधे सब चौपट हो रहे हैं.. मोदी जी ने कहा था, हर वर्ष दो करोड़ रोजगार देंगे. उस हिसाब से अब तक छः करोड़ लोगों को काम मिल जाना चाहिए था. अभी तक तो भारत सरकार में ही बमुश्किल 4-5 सौ लोगों को नौकरी मिलती है. जेपी के आन्दोलन का सबसे बड़ा परिणाम यह हुआ कि लोकतंत्र वापस आया और पहली बार जनता ने अपने पुरुषार्थ को पहचाना .
हिन्दुस्तान की जनता ने जेपी के वक्त ही पुरुषार्थ को पहचान लिया था. मैं वहीं था जब जेपी से कांग्रेस, लोकदल, समाजवादी पार्टी और जनसंघ के लोग मिलने पहुंचे थे. उनका स्वास्थ्य पूछ रहे थे. जेपी ने दो ही बातें कहीं या तो आप लोग एक हो जाओ, या मुझे छोड़ दो. हो गए सब लोग एक. जेपी एक तरह से जनता की आवाज हो गए थे. अभी जो जनता की आवाज नहीं सुनेगा, जनता उसे उठाकर कूड़ेदान में फ़ेंक देगी. तो अभी भी सबके सहयोग से ही आगे बढ़ा जाएगा .देश अभूतपूर्व संकट में है. आजादी की लड़ाई के सारे मूल खतरे में है.’ निश्चय ही देश अभूतपूर्व संकट में है, लेकिन संकट में सम्पूर्ण देश नहीं,मात्र बहुजन- भारत है.मोदी द्वारा सिर्फ सवर्ण- भारत के हित में सारा काम करने के कारण ही आज बहुजन भारत अभूतपूर्व रूप से संकटग्रस्त हुआ है.
स्वाधीन भारत में हजारों साल के विशेषाधिकारयुक्त व सुविधाभोगी के सुख-समृद्धि के महल को और बुलंद करना ही संघ का लक्ष्य रहा है और उसके लक्ष्य पूर्ति के लिए मोदी जिस तरह अपनी प्रचंड बहुमत वाली सत्ता का इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे बहुजन समाज के जागरूक लोग उद्भ्रांत होकर किसी बहुजन जेपी के अवतरित होने की राह देख रहे हैं. क्योंकि मृतप्राय हो चुके सवर्ण-परस्त बहुजन नेतृत्व, बहुजन भारत के सर्वनाश पर अमादा मोदी का मुकाबला करने में पूरी तरह अक्षम प्रतीत हो रहा है।
मोदी के कारण सिर्फ बहुजनों की ही आजादी ही खतरे पड़ी है. तो सवाल पैदा होता है , क्या इस अभूतपूर्व संकट की घडी में शरद यादव लाला जेपी नहीं, बहुजन जेपी की भूमिका ग्रहण कर वीभत्स-संतोषबोध का शिकार हो चुके बहुजनों में शक्ति के स्रोतों में हिस्सेदारी लेने लायक पुरुषार्थ पैदा करेंगे – एच एल दुसाध (बहुजन चिंतक)