बिहार के खगड़िया में महादलितों के पचास से अधिक घर जला दिए गए और जलाने वाले लोग पिछड़ी जाति के नव-सामंती दबंग हैं। कुछ बौद्धिक बहुजन एकता के लिए दिन रात एक कर रहे हैं, जबकि ज़मीन पर पिछड़े ही दलितों पर ये अत्याचार कर रहे हैं। सरकारें ये होने देती हैं, क्योंकि उनको पानी आग सबसे लाभ लेना होता है।
सामाजिक न्याय की वैचारिकी को ऐसे दृश्य गंभीर मोड़ दे रहे हैं। भारतीय सामाजिक संरचना में समीकरण ताक़त से ही निर्धारित होते हैं, वह ताक़त सामाजिक भी है और आर्थिक भी। जातिगत श्रेष्ठता बोध का सत्ता व ताक़त से गठजोड़ ऐसे फलीभूत होता है। बाकी नारे लगाने में हाथ भाँजते रहने में कहाँ कुछ जाता है। कमज़ोर हमेशा मारा जाएगा।
(गोरख नाथ यादव)