पूना पैक्ट के बारें में बहुत कम लोगों को जानकारी हैं। आखिर क्या हैं पूना पैक्ट ?,यह जानना जरूरी हैं ।२४ सितंबर १९३२ को पूना पैक्ट लागु हुआ ।
बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़करजी पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर नहीं करना चाहते थे । उनको हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया । पूना पैक्ट सलाह-मशवरा कर, चर्चा या विचार-विमर्श कर नहीं हुआ । यानि पूना पैक्ट, एक पार्टी ने दूसरे पार्टी के विरोध में जबरजसती की ।
बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़करजी ने अपने दस्तावेज में लिखा ”पूना पैक्ट एक शरारतपूर्ण धोखाधडी हैं । इसको मैंने स्वीकार क्यों किया ? मैंने पूना पैक्ट इसलिए स्वीकार किया, क्योंकि गांधीजी ने षड्यंत्रपूर्वक मेरे ऊपर दबाव डालने के लिए येरवडा जेल में आमरन अनशन किया था । उस आमरन अनशन के षड्यंत्रपूर्ण दबाव की वजह से मैंने पूना पैक्ट का स्वीकार किया । उस समय गांधी और काँग्रेस के लोगों ने मुझे आश्वासन दिया था, कि अनुसूचित जाति का, जो पूना पैक्ट अन्तर्गत संयुक्त मताधिकार के तहत जो चुनाव होगा, उसमें हस्तक्षेप करने का काम नहीं करेंगे, यह आश्वासन १९३२ में गांधी और कॉग्रेस के लोगों ने बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़करजी को दिया था । यह आश्वासन १९३७ में सेण्ड इण्डिया एक्ट ३५ अंतर्गत प्रोविंशियल गव्हर्नमेंट के लिए भारत में चुनाव हुआ और उस चुनाव में कॉग्रेस और गांधी जी ने उस दिए हुए आश्वासन का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन किया और इतना ही नहीं इन दोनों ने १९३७ चुनाव में हस्तक्षेप भी किया ।
हमारे लोग एक तो पढ़ते नहीं है, और अगर पढ़ते भी हैं तो समझ नहीं पाते और अगर समझ आ भी जाता हैं तो वह अन्य लोगों को बताते नहीं, क्योंकि बताने के लिए उन्हें हिम्मत और साहस ही नहीं होता हैं । इस तरह से सिध्द होता है कि पूना पैक्ट के विरोध में बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़करजी ने तीन किताबें लिखी
१ ) गांधी और कांग्रेस ने अछूतों के साथ क्या व्यवहार किया ?
२ ) गांधी और अछूतों की आजादी, ३ ) राज्य और अल्पसंख्याक ।
ये तीनों किताबें में इन सारी बातों की जानकारी विस्तारपूर्वक से लिखी गई हैं । जब बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़करजी को मजबूर होकर पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर करना पडा, तो दूसरे ही दिन उन्होंने पूना से चलकर बम्बई आये और पूना पैक्ट का धिक्कार किया । और उन्होंने तीन बातें कहीं
१ ) जो लोग ऐसा कहते हैं कि प्रथक निर्वाचन क्षेत्र ( Separate Electorates ) से नुकसान होता है, मुझे उन कहने में किसी किस्म का तर्क या दलील नजर नहीं आता ।
२ ) दूसरा मुद्दा उन्होंने कहाँ कि जो लोग ऐसा सोंचते हैं कि संयुक्त निर्वाचन क्षेत्र ( Joint Electorates ) से अछूत, हिन्दू समाज का अभिन्न अंग बन जाऐंगे, अर्थात संयुक्त हो जाएंगे इस पर मेरा बिलकुल यकिन और विश्वास नहीं हैं । १९३२ में यह बात बाबासाहब ने कही । आज २०१६ साल चल रहा हैं, परन्तु अछूतों के ऊपर सारे देशभर में अत्याचार और अन्याय हो रहे हैं, इससे सिद्द होता हैं कि अछुत हिन्दू समाज का अभिन्न अंग नहीं हैं । उस समय सवर्ण हिन्दुओं ने कहाँ था कि संयुक्त निर्वाचन क्षेत्र से अछुत हिन्दू समाज का अभिन्न अंग बनेंगे, ऐसा नहीं हो पाया ।
अछूत इस वजह से दु:खी थे, और दु:खी होने का उनका जायज कारण था । यह सारी बातें बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़करजी ने २५ सितंबर १९३२ में पूना से बम्बई आकर एक सभा को संबोधित करते हुए कहाँ यह वास्तविक बातें आप लोगों को इसलिए बतायी जा रही हैं, कि बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़करजी किसी भी परिस्थिति में पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर करनेवाले नहीं थे । क्योंकि वे जानते थे कि भविष्य में ऐसा भयानक षड्यंत्र हो सकता हैं जिसका इस देश पर गहरा असर पड़ेगा जिसे हम आज देख रहें है ।