नई बहस ,अगर ये धर्म है तो अधर्म क्या है ?

योगेंद्र यादव

जब भी मैं डेरा सच्चा सौदा के बारे में सुनता हूँ, मुझे 20 अक्टूबर 2002 की याद आ जाती है। उस दिन मैं हरियाणा के शहर सिरसा में था, जो डेरे के मुख्यालय के नज़दीक है। मुझे वहां के अखबार “पूरा सच” के संपादक रामचंद्र छत्रपति जी ने “वैकल्पिक राजनीती और मीडिया की भूमिका” विषय पर व्याख्यान देने के लिए बुलाया था। एक ईमानदार और साहसी पत्रकार के रूप में छत्रपति जी की ख्याति और सिरसा शहर की पंजाबी और हिंदी की साहित्यिक मण्डली ने मुझे अभिभूत किया था। भाषण के बाद छत्रपति जी मुझे दूध-जलेबी खिलाने ले गए।

वहीँ सड़क के किनारे बैठकर मैं उनसे डेरा सच्चा सौदा के बारे में सुनने लगा। उन्होंने मुझे पहली बार एक साध्वी द्वारा बाबा के खिलाफ यौन शोषण के आरोप के बारे में बताया। डेरे के अंदर की बहुत ऐसी बातें बतायीं जो मैं यहाँ लिख नहीं सकता।

यह सुनकर मैंने कहा “अगर ये धर्म है तो अधर्म क्या है?” छत्रपति जी मुस्कुराये, बोले ये बोलने की किसी में हिम्मत नहीं है। कोई वोट के लालच में चुप है, कोई पैसे के लालच में चुप है। लेकिन “पूरा सच” में हमने साध्वी की चिठ्ठी छाप दी है। उससे बाबा बौखलाए हुए हैं। चिठ्ठी छपने के महीने के अंदर उसे लीक करने के शक में भाई रंजीत सिंह की हत्या कर दी गयी।

सुनकर मैं सिहर गया। पूछा “रामचंद्र जी, आपको खतरा नहीं है”? बोले “हाँ कई बार धमकियाँ मिल चुकी हैं, क्या होगा कोई पता नहीं। लेकिन कभी न कभी तो हम सबको जाना है।” चार दिन बाद खबर आयी कि रामचंद्र छत्रपति के घर पर हमलावरों ने उन्हें पांच गोलियां मारी। कुछ दिन के बाद छत्रपति जी चल बसे। हरियाणा सरकार (उन दिनों चौटाला जी की लोक दल की सरकार थी) ने हत्या की ढंग से जांच तक नहीं करवाई, प्रदेश भर के पत्रकार खड़े हुए, फिर भी सरकार CBI जांच के लिए न मानी।

आखिर पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के आदेश के बाद CBI जांच हुई (उसे भी डेरे ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, रिटायर्ड जस्टिस राजेंद्र सच्चर के खड़े होने के बाद कहीं जाकर जांच शुरू हो सकी) जांच के बाद CBI ने रामरहीम और उनके विश्वासपात्रों को छत्रपति जी की हत्या का आरोपी बनाया। वो मुकदमा अभी चल रहा है। फैसला आना बाकी है। जब भी बाबा का कोई केस कोर्ट में लगता है, उनके हज़ारों अनुयायी कोर्ट को घेर लेते हैं (वैसे अभी तक किसी जज पर हमले की खबर नहीं है) उसके बाद आयी कांग्रेस और बीजेपी दोनों सरकारें डेरे के सामने नतमस्तक रही हैं। डेरे के लोग हर चुनाव से पहले खुल्लमखुल्ला पार्टियों से वोट की डील करते हैं।

2014 के हरियाणा विधान सभा चुनाव में डेरे ने बीजेपी को समर्थन दिया था। चुनाव जीतने के बाद खट्टर जी तो अपनी पूरी कैबिनेट को सिरसा लेकर बाबा का धन्यवाद करने गए थे! एक बार फिर हरियाणा जल रहा है। तीन साल की सरकार में तीसरी बार प्रदेश में आगजनी और हिंसा हो रही है, तीसरी बार सरकार को लकवा मार गया है। यह पोस्ट लिखते समय खबर है कि पंचकुला और चंडीगढ़ में 30 से ज्यादा मौत हो चुकी हैं।

हरियाणा की आग की लपटें अब पंजाब, राजस्थान और दिल्ली तक पंहुच गयी हैं। डेरे को कानून से ऊपर रखने के दोषी सभी विपक्षी दल अब बीजेपी की परेशानी का मजा ले रहे हैं। हिसार में बाबा रामपाल के अनुयायियों की हिंसा के वक्त यही हुआ था, जाट आरक्षण के दौरान प्रदेश भर में हिंसा के दौरान यही नाटक दोहराया गया था। इस बार तो हद ही हो गयी। हिंसा कोई अचानक नहीं हुई। हिंसा का आदेश था, सरकार को तारिख, स्थान और हिंसक समूह सब का पता था। उसके बाद हिंसा का होना और उसमे नागरिकों की जान जाना अक्षम्य है। इस प्रकरण में सिर्फ पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट अपनी जिम्मेवारी के प्रति सजग दिखाई दिया। नहीं तो स्थिति और भी बुरी हो सकती थी।

ऐसे में खट्टर सरकार को कुर्सी पर बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं बचता। लेकिन ये सब तो बाद की बात है। फिलहाल तो किसी तरह आग बुझाना पहली प्राथमिकता है। मेरे विचार से हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के हिंसाग्रस्त इलाकों में केंद्रीय सुरक्षा बल और फौज को बिना देर किये तैनात किया जाय। कम से कम बल प्रयोग कर स्थिति को नियंत्रित किया जाय। हाई कोर्ट के निर्देशानुसार डेरा के नेताओं को यह स्पष्ट किया जाय कि जान-माल के नुकसान की भरपाई उन्हें करनी होगी। राम रहीम और डेरे के खिलाफ कार्यवाई में सभी पार्टियां सरकार का साथ दें और डेरे के समर्थकों की सहानुभूति बटोरने के लालच से बचें। ~ Yogendra Yadav

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