फूलन देवी और ठाकुर
यह सच है कि फूलन देवी ने अपने ऊपर हुए जुल्म का बदला बेहमई में ठाकुरों को मारकर लिया था. बेहमई यूपी में है. उन पर केस भी वहीं हुआ.
लेकिन जब आत्मसमर्पण की बारी आई, तो उन्होंने एक शर्त रख दी. हथियार तो दद्दा को ही दूंगी. दद्दा यानी मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह. फूलन को यह आत्मविश्वास था कि अर्जुन सिंह उनके साथ न्याय करेंगे.
फूलन उस वक्त यह नहीं सोचती हैं कि अर्जुन सिंह तो ठाकुर हैं. उनका आत्मसमर्पण मध्य प्रदेश के ग्वालियर में अर्जुन सिंह की उपस्थिति में होता है.
अर्जुन सिंह फूलन देवी के उस भरोसे को नहीं तोड़ते. पुलिस उसका फेक एनकाउंटर नहीं करती. वे न्यायिक प्रक्रिया से गुजरती हैं.
अपनी सजा काटकर जब फूलन देवी बाहर आईं, तो जिस एक राजनेता ने उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत में मदद की वे थे, विश्वनाथ प्रताप सिंह. विश्वनाथ प्रताप सिंह के उस समय बेहद करीबी रहे रामविलास पासवान को फूलन देवी ने घर जाकर राखी बांधी थी.
उन दिनों में इंडिया टुडे में था, और इस दौर में हो रही अनेक घटनाओं का प्रत्यक्षदर्शी था. यही वह दौर था जब फूलन देवी ने एकलव्य सेना बनाई और उनकी पटना रैली में खुद मुख्यमंत्री लालू प्रसाद पहूंचे. ठाकुर उस समय जनता दल के साथ थे, जिसके नेता बिहार में लालू प्रसाद थे. बिहार के ठाकुरों का बहुुसंख्य हिस्सा और लगभग सभी नामी नेता आज भी लालू प्रसाद के साथ हैं.
आगे चलकर फूलन देवी समाजवादी पार्टी में शामिल होती हैं. मुलायम सिंह की पार्टी के ठाकुर उनका स्वागत करते हैं.
ठाकुरों ने न्यायप्रिय हिस्से ने फूलन की उस तकलीफ को समझा, जिसकी वजह से फूलन ने बेहमई कांड किया.
वह एक औरत की पीड़ा है. उसका प्रतिशोध है. कोई ठाकुर औरत भी शायद यही करती.
फूलन देवी को ठाकुरों के मुकाबले खड़ा करने वाले दुष्ट लोग हैं. यहां जाति का कोई मामला ही नहीं है.
ठाकुरों के नायक वीपी सिंह और अर्जुन सिंह जैसे न्यायप्रिय राजनेता हैं. कायर अपराधी शेर सिंह राणा नहीं. शेर सिंह राणा ने तो फूलन देवी को तब मारा,जब वे हथियार डालकर सार्वजनिक जीवन में आ चुकी थीं. ये कौन सी बहादुरी है? – दिलीप सी मंडल की वाल से