जीएसटी लागू होने की पूर्व संध्या पर चल रही राजनीतिक पैंतरेबाज़ी हमारी राष्ट्रीय राजनीति के पाखंड और संवेदनहीनता का आईना है। एक तरफ़ विपक्ष की भूमिका में जीएसटी में अड़ंगे लगाने वाली बीजेपी इसे लागू करने का श्रेय लूटने की फ़िराक़ में है। देशभर में उभरे किसान विद्रोह पर कान ना देने वाली सरकार इस रस्मी अवसर पर आधी रात को संसद अधिवेशन का तमाशा करने को तैयार है। दूसरी तरफ़ जीएसटी के हर निर्णय में भागीदार रही विपक्षी पार्टियां अब जीएसटी में मीन-मेक निकालने के बहाने ढूँढ रही है।
इसमें कोई शक नहीं कि जीएसटी सही दिशा में एक सकारात्मक क़दम हो सकता है, जिससे भ्रष्टाचार और टैक्स चोरी कम होने और साथ ही सरकारों का खजाना बढ़ने की संभावना है। यह भी सच है कि जीएसटी को जिस तरह से लागू किया जा रहा है, उससे बड़ी कंपनियों और अमीरों का तो फायदा होगा परंतु हाशिये पर खड़े लोग इसकी मार झेलेंगे। छोटा दुकानदार जीएसटी के बाहर रह सकता है लेकिन बड़ी दुकानों से प्रतिस्पर्धा में मार खायेगा। किसान की लागत बढ़ गई है, लेकिन सरकारी समर्थन मूल्य नहीं बढ़ा है। असंगठित मज़दूर का घर ख़र्च बढ़ेगा लेकिन आमदनी नहीं। और इससे बिना किसी सार्थक फायदे के ही एक तरह के आर्थिक और राजनीतिक सत्ता के केंद्रीकरण का ख़तरा पैदा होता है। जीएसटी लागू करने की पूर्व संध्या पर हो रही राजनीतिक नौटंकी इस कड़वे सच से ध्यान बंटाने की कोशिश है।
अनुपम
राष्ट्रीय प्रवक्ता
स्वराज इंडिया