‘इतना लड़ने के बाद भी मैं हार गया,वाह रे मेरा देश! वाह रे इसकी शिक्षा व्यवस्था!’ये स्टेटमेंट है 18-19 साल के हाईस्कूल के छात्र ‘अवनीश यादव’ का Avanish Yadav। अवनीश आजमगढ़ बेलइसा के ‘चिल्ड्रेन सीनियर सेकंडरी स्कूल’ के छात्र है। इनके पिता जी ने स्कूल की मोटी फीस का साल भर का स्टेटमेंट मांग लिया।स्कूल मैनेजमेंट ने स्कूल फीस का स्टेटमेंट तो नही दिया लेकिन ‘अवनीश’ को ‘टीसी’ दी और स्कूल से निकाल दिया। स्कूल मेनेजर ‘बजरंग त्रिपाठी’ जो छात्रो से साल भर रीढ़ तोड़ देने वाली फीस वसूलते है उन्होंने एक बार भी नही सोचा कि छात्र का इसी बार दसवी का बोर्ड एग्जाम है। स्कूल से निकाल देने पर उसका एक साल बर्बाद हो जायेगा। इतना सब होने पर भी ‘अवनीश’ और उनके पिता ने हार नही मानी। अवनीश बताते है कि उन्होंने कक्षा 6ठी की एक किताब में ‘बाल अधिकारो और बाल आयोग’ के विषय में पढ़ा था उसी से प्रेरित होकर इन्होंने ‘बाल आयोग’ में स्कूल के तानाशाही रवैये की शिकायत दर्ज करायी। बाल आयोग के हस्तक्षेप के बाद स्कूल में उनका पुन: एडमिशन हुआ। अवनीश बताते है कि इस पूरी लड़ाई के दौरान उन्हें राष्ट्रपिता ‘गाँधी’ जी का कथन’
‘हो सकता है आप कभी न जान सके की आपके काम का क्या परिणाम हुआ, लेकिन यदि आप कुछ करेंगे नही तो कोई परिणाम नही होगा’|
ने प्रेणना दी।
अवनीश अपनी लड़ाई जीत चुका था । लेकिन आज जब सीबीएससी बोर्ड दसवी के नतीजे आये तो उन्हे परीक्षा से अनुपस्थित बताकर उनका परिणाम शून्य बताया गया। अब सवाल यह है कि बोर्ड एग्जाम में एब्सेंट दिखा दिया… ये कैसे पॉसिबल है? लोकल एग्जाम तो था नही…सो बोर्ड की अटेंडेंस शीट कहाँ है, कॉपी कहाँ हैं? उसमे सिग्नेचर होने के बाद चेंज पॉसिबल कैसे है?
अवनीश अपनी ऍफ़ बी पोस्ट में बेहद निराश दिखे। मात्र 18 -19 साल का एक लड़का जो पूरे भ्रष्ट एजुकेशन सिस्टम से लड़ रहा है उसका यूँ हार जाना हमारे समाज की कमजोरी है। हमारी कमजोरी है।पूरे देश भर में जब शिक्षा के निजीकरण की पुरजोर कोशिश की जा रही है। फीस वृद्धि से लेकर, फेलोशिप रोकने की कवायद की जा रही है। जब फीस वृद्धि के ख़िलाफ लड़ रहे पंजाब यूनिवर्सिटी,जेएनयू, के छात्रो का बर्बर दमन हो रहा है। तब इस गुमनाम साथी की ये लड़ाई बहुत मायने रखती है। उसे हारने ना देना बहुत मायने रखता है। साथ आईये, आवाज उठाईये और ‘अवनीश’ की लड़ाई को ये मानकर चलिए हम सबकी लड़ाई है। –शालू यादव